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बैंगलोर रॉयट्स धरने से दंगे तक की साजिश थी।: मोनिका अरोड़ा

बुधवार यानी 12 अगस्त को जन की बात के फाउंडर एंड सीईओ प्रदीप भंडारी ने सुप्रीम कोर्ट की वकील मोनिका अरोरा से जान की बात कन्वर्सेशन सीरीज में विशेष बातचीत की। इस दौरान प्रदीप भंडारी ने हर वह सवाल पूछे जिसे आप जानना चाहते हैं। दिल्ली दंगों से लेकर के बेंगलुरु दंगों पर प्रदीप भंडारी ने मोनिका अरोड़ा से विशेष बातचीत की।

आइए बातचीत के कुछ अंश से आपको रूबरू कराते हैं:-

सबसे पहला सवाल प्रदीप भंडारी ने पूछा कि यह कैसे संभव हो सकता है कि एक कांग्रेस के एमएलए का करीबी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देता है ,जिसके बाद 100 से अधिक लोग हथियार लेकर आ जाते हैं?

इस सवाल पर जवाब देते हुए मोनिका अरोड़ा ने कहा कि दंगों के लिए जन्माष्टमी का दिन ही क्यों चुना? पहले एक श्री कृष्ण के खिलाफ सोशल मीडिया पर पुराना पोस्ट होता है ,उसे सर्कुलेट किया जाता है, जिसके बाद एमएलए का भतीजा नवीन गुस्से में एक अलग पोस्ट करता है। मिनटों में यह पोस्ट वायरल हो जाता है और रात को 11:00 बजे ही सैकड़ों लोग एमएलए के घर पहुंच जाते हैं और उनके घर का सब कुछ सामान लूटा जाता है। उसके बाद उनके घर को जलाया जाता है। बाद में रास्ते में जो भी पड़ता है, उसके वाहनों को तोड़ा जाता है। उन्होंने बताया कि दंगों में एसडीपीआई के लोग रात में दंगों के दौरान ही लोगों को पैसा भी दे रहे हैं। सिमी जो कि एक टेरेरिस्ट ऑर्गेनाइजेशन था, जिसे बैन किया गया उसके बाद में पीएफआई बना और पीएफआई का ही पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन एसडीपीआई है। यह सब दिल्ली दंगों जैसा प्री प्लानड था।

इसके बाद प्रदीप भंडारी ने पूछा कि क्या यह दंगे दिल्ली राइट्स जैसे ही थे। जैसे दिल्ली में पहले धरने सड़कों पर किए गए उसके बाद में दंगे हुए?

इस विषय पर बात करते हुए मोनिका अरोड़ा ने कहा कि यह बिल्कुल दिल्ली दंगों जैसा ही था। जैसे दिल्ली में धरने होते हैं एंटी सी ए ए प्रोटेस्ट के नाम पर एक ऐसा बिल जिसे पार्लियामेंट ने पास किया हो और बाद में उसके विरोध की आड़ में दिल्ली में दंगे होते हैं। ठीक उसी प्रकार की हिंसा बेंगलुरु में हुई। शाहीन बाग और बिलाल बाग की घटना एकदम सेम है। जैसे शाहीन बाग में पहले धरने के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को बैठाया गया ,सड़कों को कब्जे में लिया गया, स्टेज पर कॉन्स्टिट्यूशन रखा और फिर वहां से हिंदुस्तान की एकता के खिलाफ बोला गया। ठीक वैसा ही बिलाल बाग में हुआ।

इसके बाद प्रदीप भंडारी ने पूछा कि यह जो जय भीम और जय मीम का नारा है , इसका क्या हुआ। क्यों यह नारा सच्चाई में तब्दील नहीं हुआ?

इस पर जवाब जवाब देते हुए मोनिका अरोड़ा ने कहा कि यह उनकी चाल है कि हिंदुओं में से एक ग्रुप ऑफ पीपल को अलग कर दो, लेकिन जनता ने इसे नकार दिया। उनकी चाल है जैसे राम को सब्री से अलग कर दो। मोनिका अरोड़ा ने कहा कि यह लोग राम को केवट से अलग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो दिल्ली में दंगे हुए इसमें पहले दो आदमी दलित मरे थे और अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हुए भीड़ ने इनको मारा था। यह लोग क्यों नहीं तब जय मीम जय भीम का नारा लगवाएं। बेंगलुरु में भी जो हुआ वह भी एक दलित एमएलए ही है उसका सब कुछ लूट कर चले गए हैं। धरने की आड़ में दंगे कराना इनकी एक साजिश रहती है और यह हमेशा उसी स्ट्रेटजी के तहत चलते हैं।

इसके साथ ही प्रदीप भंडारी ने मोनिका अरोड़ा से और कई मुद्दों पर बातचीत की।

पूरी बातचीत देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

 

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