बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.जे अकबर के द्वारा दायर मानहानि अपील मामले में पत्रकार प्रिया रमानी से जवाब मांगा। अकबर ने अपनी अपील में कहा है कि ‘निचली अदालत ने इस मामले को आपराधिक मानहानि के तौर पर नही बल्कि यौन शोषण के केस के तौर पर देखा और रमानी को बरी कर दिया। निचली अदालत ने प्रतिवादी(रमानी) द्वारा पेश किए गए साक्ष्य को अपने ध्यान के केंद्र में रखा । प्रतिवादी के पास खुद के बयान के अलावा कोई दूसरा साक्ष्य नही था फिर भी निचली कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।’
दरअसल मामला 2018 से शुरू होता है जब प्रिया रमानी ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एम.जे.अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। रमानी ने इस आरोप को 20 साल पुराना बताया था। रमानी के अनुसार अकबर तब पत्रकार हुआ करते थे और रमानी उनके साथ काम करती थी ।
रमानी के यौन शोषण के आरोप के बाद एम.जे अकबर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उसके बाद उन्होंने 15 अक्टूबर 2018 को निचली अदालत में प्रिया रमानी के खिलाफ IPC की धारा 500 के तहत मुकदमा दर्ज किया,जिसका फैसला 17 फरवरी 2021 को आया जिसमें निचले कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी महिला को दशकों पहले हुए शोषण या अपराध के खिलाफ बोलने का अधिकार है। निचले कोर्ट ने प्रिया रमानी के खिलाफ दायर मानहानि से बरी कर दिया था । उसके बाद अकबर ने 25 मार्च को हाई कोर्ट में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए अपील किया।
हाइकोर्ट ने प्रिया रमानी से जवाब मांगा है और जनवरी 13 अगली सुनवाई की तारीख दी है। अकबर की तरफ से वकील लूथरा ने कोर्ट में कहा कि निचली अदालत राम और रावण ढूढ़ने में थे जबकि उन्हें दोनों पक्षों की बात सुननी चाहिए थी जबकि उन्होंने सिर्फ एक पक्ष को सुना और फैसला दिया।