देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट में आज, (11 मई) को अंतरिम आदेश जारी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस कानून की समीक्षा पूरी होने तक देशद्रोह का कोई नया केस दर्ज नहीं होगा. कोर्ट के मुताबिक जो लोग इस केस की वजह से जेल में बंद है वह जमानत के लिए कोर्ट आ सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहित IPC की धारा 124 के यानी राज्यों के कानून पर पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अंग्रेजों के जमाने के कानून का आजाद भारत में क्या काम है? और आजादी के 75 साल बाद भी इसके वजूद में होने पर सवाल खड़े किए.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा राजद्रोह कानून की जरूरत नहीं
अब सवाल उठता है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि देश को राजद्रोह कानून की अब जरूरत नहीं. आइए, पिछले कई सालों के आंकड़ों को समझते हैं.. साल 2016 में राजद्रोह कानून के तहत 73 लोगों को हिरासत में लिया गया. इनमें से सिर्फ 33 फीसदी लोगों पर ही आरोप सिद्ध हुआ. साल 2017 में सबसे ज्यादा कुल 228 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से सिर्फ 16.7 फीसदी केस सही पाए गए. इसी तरह साल 2018 और 2019 में 56 और 99 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए लेकिन 2018 में 15.4 फीसदी और 2019 में सिर्फ 3.3 फीसदी लोगों के खिलाफ आरोप साबित हुए. साल 2020 में कुल 44 लोगों को हिरासत में लिया गया लेकिन आरोप 33.3 फीसदी लोगों के खिलाफ ही सिद्ध हो सके.
आंकड़ों से यह साफ होता है कि राजद्रोह के केस दर्ज होने और आरोप सिद्ध होने के आंकड़ों के बीच बहुत बड़ा फैसला है.मतलब बड़ी संख्या में ऐसे कई केस हैं जो अधूरी तैयारी के साथ दर्ज होते हैं,और कई लोगों के खिलाफ अपराध सिद्ध नहीं हो पाते. यही वजह है की सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा.
राज्यों की क्या है स्थिति
राज्यवार आंकड़ों की बात करें तो असम में सबसे ज्यादा राजद्रोह के मामले (2018-19 -23 मामले और 2020 में 10 मामले) दर्ज हुए. वहीं 2018 में आंध्र प्रदेश में करीब 15 मामले, मध्य प्रदेश में 4, छत्तीसगढ़ में 3 मामले दर्ज हुए. इसी तरह 2019 में उत्तर प्रदेश में 9, नागालैंड में 11 और कर्नाटक में 18 मामले दर्ज हुए. 2020 में मणिपुर में राजद्रोह के 15 मामले सामने आए वहीं इसी साल असम में 12, कर्नाटक में 8, उत्तर प्रदेश में 7 मामले दर्ज किए गए.
हनुमान चालीसा पड़ने पर लगाया गया देशद्रोह कानून: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने देश को कानून के दुरुपयोग की चिंता को जाहिर किया और नवनीत राणा का मामला उठाया कोर्ट ने कहा-अटॉर्नी जनरल ने खुद कहा था कि हनुमान चालीसा पढ़ने पर देशद्रोह कानून लगाया जा रहा है.
जानकारों का कहना है कि संविधान की धारा 19 (1) में पहले से अभिव्यवक्ति की स्वतंत्रता पर सीमित प्रतिबंध लागू हैं। ऐसे में 124A की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए।उनका कहना है कि सरकारें इस कानून का उपयोग अपने आलोचनों का दबाने के लिए करती हैं और ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित पाबंदी है।भारत में यह कानून बनाने वाले अंग्रेज भी अपने देश में भी इसे खत्म कर चुके हैं।
जिनपर राजद्रोह के केस चल रहे हैं, उनका क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिनपर राजद्रोह का केस चल रहा है और जो जेल में हैं वो जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। उनपर कार्रवाई पहले की तरह चलती ही रहेगी। ये कोर्ट पर निर्भर करेगा कि आरोपियों को जमानत दी जाती है या नहीं।