अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सख्त निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आईपीसी की धारा 124 ए के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने की अनुमति दी है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब तक दोबारा इस पर विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक 124 ए के तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा.
कोर्ट ने इस कानून के तहत दर्ज पुराने मामलों में भी कार्रवाई पर रोक लगा दी है. इस कानून के तहत जो आरोपी पहले से जेल में बंद है, वह जमानत के लिए अपील कर सकते हैं. मामले में अब जुलाई के तीसरे हफ्ते में सुनवाई होगी. बता दें कि अभी तीन जजों की बेंच राजद्रोह कानून की वैधता पर सुनवाई कर रही है. इस बेंच में चीफ जस्टिस एनवी रमणा,जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हीमा कोहली शामिल है.
जाने आज सुप्रीम कोर्ट के अंदर सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बड़ा फैसला देते हुए राजद्रोह कानून के तहत कोई नया केस दर्ज करने पर रोक लगा दी. चीफ जस्टिस एनवी रमण की बेंच ने केंद्र सरकार को देशद्रोह कानून धारा 124A पर पुनर्विचार करने की इजाज़त देते हुए कहा कि इस प्रावधान का उपयोग तब तक करना उचित नहीं होगा. जब तक कि इस पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती. उन्होंने उम्मीद जताई कि 124 ए पर फिर से विचार की प्रक्रिया पूरी होने तक न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार इसके तहत केस दर्ज करेगी. कोर्ट ने ये भी कहा कि जो लोग 124 A के तहत जेल में बंद हैं, वो जमानत के लिए कोर्ट में जाएं.
केंद्र की दलील-एसपी की मंजूरी के बाद ही राजद्रोह केस
केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि हमने राज्य सरकारों को जारी किए जाने वाले निर्देश का मसौदा तैयार किया है. उसके मुताबिक राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश होगा कि बिना जिला पुलिस कप्तान यानी एसपी या उससे ऊंचे स्तर के अधिकारी की मंजूरी के राजद्रोह की धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी. इस दलील के साथ सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा कि फिलहाल इस कानून पर रोक न लगाई जाए. जहां तक मौजूदा केस का सवाल है तो अदालत इस मामले में जमानत देने पर विचार कर सकती है. हालांकि, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मौजूदा मुकदमे को चलते रहने देने की दलील दी. सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार ने एक गाइडलाइंस तैयार किया है.
पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून का इस्तेमाल उचित नहीं
कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है. इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है. कोर्ट ने कहा कि जिनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप में मुकदमे चल रहे हैं, वह जमानत के लिए समुचित अदालत में अर्जी दाखिल कर सकते हैं. क्योंकि केंद्र सरकार ने इस कानून पर पुनर्विचार के लिए कहा है, लिहाजा कोर्ट ने कहा है कि जब तक पूर्ण विचार नहीं हो जाता तब तक इस कानून के तहत कोई केस नहीं होगा. साथ ही लंबित मामलों में भी कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी.
कपिल सिब्बल की दलील
याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हमने कोर्ट से राजद्रोह कानून को रोकने की मांग नहीं की है. यह दूसरी वजह से हो रहा है. सिब्बल की इस दलील पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा- ये आगे की प्रक्रिया है। हम यहां इस मुद्दे के उचित समाधान की बात करने के लिए हैं.
क्या है राजद्रोह कानून?
आईपीसी की धारा 124 ए के अनुसार राजद्रोह एक अपराध है. राजद्रोह के अंतर्गत भारत में सरकार के प्रति मौखिक, लिखित या संकेतों और दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने के प्रयत्न को शामिल किया जाता है. इस कानून में गैर-जमानती प्रावधान है. आरोपी को सजा के तौर पर आजीवन कारावास दिया जा सकता है और राजद्रोह के अपराध में 3 साल तक की सजा हो सकती है