फेक वीडियो प्रकरण में संबंधित राष्ट्रीय मीडिया चैनल और उसके एंकर ने अपनी गलती मान ली, बाकायदा इसके लिए माफी भी मांगी और दो लोगों को नौकरी से भी निकाल दिया गया। इतना ही नहीं, वीडियो की सच्चाई ने वायनाड से सांसद कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की छवि को धक्का पहुंचाने के बजाय देश-दुनिया में यही साबित किया कि वह दुष्प्रचार के शिकार हैं। लेकिन क्या इसके बाद भी इस मामले को खींचकर पूरी मीडिया बिरादरी को बदनाम करना उचित है? राहुल गांधी ने मीडिया के सामने बड़ी उदारता का परिचय देते हुए वायनाड के दफ़्तर में हुई तोड़फोड़ के आरोपी युवाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने की बात कही थी, तो उनकी पार्टी एक नए पत्रकार के खिलाफ क्यों इतनी आक्रामक हो गई? मीडिया भी इसी समाज का हिस्सा है, उससे कोई चूक हो सकती है। वैसे भी, इस गलती से उस मीडिया समूह की प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंची है। इस मामले को यहीं खत्म कर देना चाहिए था, लेकिन कांग्रेस पार्टी इससे अधिकाधिक राजनीतिक लाभ उठाने में जुट गई है।
कांग्रेस की परेशानी क्या है? कभी अमन चोपड़ा (राजस्थान पुलिस द्वारा) को पकड़ने की कोशिश, तो कभी रोहित रंजन (छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा) को पकड़ने की कोशिश। क्या कांग्रेस पत्रकारों को डराकर चुप कराने की कोशिश कर रही हैं ? इससे जनता के बीच क्या सन्देश जायेगा कि कांग्रेस आज भी आपातकाल जैसे रवैये से बाज नहीं आ रही हैं, आज भी मौक़ा मिलते ही ये मीडिया का दम घोंटने से पीछे नहीं हटेगे? अब वह जमाना गया साहेब, सोशल मीडिया के युग में किसी से कुछ भी नहीं छिपता। रही बात गलत रिपोर्टिंग की, तो मानवीय त्रुटि हो जाती है। एक ट्रेंड का बन गया हैं, एक खास वर्ग ने कुछ पत्रकार और मीडिया चैनेल को गोदी मीडिया जैसे नाम देकर कीचड़ उछाला जाता हैं. जो स्वस्थ लोकतंत्र में कतई भी अच्छा नहीं माना सकता हैं. मीडियाकर्मियों और न्यूज़ चैनेल का काम खबरों को जनता तक पहुंचना होता हैं, जिसके लिए पत्रकार पूरी निष्ठा के अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता हैं.
राजनीतिक पार्टियों का काम एक-दूसरे की कमियां उजागर करना है, लेकिन पत्रकारिकता का उद्देश्य सूचना और जन-पक्षधरता है। लोकतंत्र में यही काम चौथे स्तंभ को करना है। एक-दो पत्रकारों की गलती की सजा पूरी पत्रकारिता को नहीं मिलनी चाहिए।
(लेखक के सभी विचार व्यक्तिगत हैं)