कांग्रेस की सरकार यूं तो दो राज्यों तक सिमट गई हैं, दोनों ही राज्यों में आगामी दो साल बाद चुनाव होने हैं, लेकिन जिस प्रकार का व्यवहार राजस्थान की सरकार का देखने को मिल रहा हैं, वो किसी भी राज्य की जनता के लिए सुखद नहीं हैं. राजस्थान में सांप्रदायिक घटनाओं की बाढ़ सी आ गई हैं, चाहें उदयपुर में एक साधारण दर्जी की गला काटकर हुई हत्या हो ,या अजमेर दरगाह के सिरफिरे ख़ादिम द्वारा भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की हत्या पर इनाम घोषित करने वाली घटना. ऐसा कैसे हो सकता है कि एक खादिम सलमान चिश्ती जो दरगाह थाने का ही हिस्ट्रीशीटर हो, वो वर्षों खादिम बना भी रहे जो कहता है- ‘नूपुर शर्मा का गला काटो, अपना मकान दे दूंगा ईनाम में। यह भी कि मैं होता तो अब तक गोली मार देता नूपुर को!’ आखिर एक बयान की सजा किस-किसको और कितनों को देना चाहते हैं ये कट्टरपंथी ? और क्यों?
क्या हत्या या नृशंस हत्या भी किसी समस्या का समाधान हो सकता है ? कम से कम भारत जैसे देश के सभ्य समाज में तो नहीं ही हो सकता! फिर इस तरह का कृत्य करने वाले, इस तरह की धमकियां देने वाले लोग खुले कैसे घूम रहे हैं? वो पुलिस किस कोने में मुंह छिपाए बैठी रही, जो इसे हिस्ट्रीशीटर घोषित करके कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेती है? पुलिस सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, जैसे उसका काम ही यही हो! पुलिस क्या कर रही है? यह पूरा तंत्र क्या कर रहा है? और सरकार ही क्या कर रही है?
क्या वह सिर्फ इसलिए है कि पेट्रोलियम पदार्थ पर वैट लगाकर आम जनता का तेल निकालें, या किसी भी असामाजिक और हिंसक घटना के लिए केंद्र सरकार पर जिम्मेदारी डाल ले, बॉस लॉ एंड ऑर्डर राज्य सरकार का विषय है ,ये आप भली भांति जानते हैं, इसका नमूना लोगों ने उस विडियो में देखा है जब एक सर्किल इंस्पेक्टर आरोपी को समझा रहा था कि बोलना शराब के नशे में बोल दिया था ,बच जाएगा. इतिश्री! सरकार को चाहिए कि गलत बयान देने और उसकी प्रतिक्रिया में गलत कृत्य करने वालों- दोनों के ही प्रति सख्त रवैया अपनाए।
इस खादिम सलमान चिश्ती का वीडियो देख-सुनकर जाने कौन-कौन और कितने लोग प्रभावित हुए होंगे, क्या-क्या कर रहे होंगे, यह भी किसे पता! जहां तक पुलिस का सवाल है, उसे तो शायद यह जानने की जरूरत भी नहीं महसूस होती होगी! इससे तो बारिश भली, जो नया-पुराना, सबकुछ धो जाती है।
सब कुछ धुला-धुला सा, घुला-घुला-सा लगता है। लेकिन समाज में फैल रहे नफरत के इन बीजों का क्या किया जाए, जो किसी भीषण गर्मी में भी मरते नहीं। किसी कड़ाके की ठण्ड में ठिठुरते नहीं, किसी भीषण और जानलेवा बाढ़ में भी बहते नहीं। कायम रहते हैं हमेशा…! आखिर क्यों? जब तक सरकारें तुष्टीकरण की राजनीति बंद नहीं करेगी और इसके लिए कठोर दंडात्म कानून नहीं बनाएगी ये नफरती बीज ऐसे ही समाज में विष फैलाते रहेंगे.