एक बार फिर कर्ज की सीमा खबरों में है और चिंता का विषय है।अमेरिका का राजकोष खाली होता जा रहा है और देश पर डिफॉल्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाने चाहती है, लेकिन विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी अड़ंगा लगा रही है।
अमेरिका का ऋण सीमा संकट श्रीलंका, पाकिस्तान और लेबनान जैसा नहीं, बल्कि सरकार को आर्थिक अनुशासन में रखने के लिए संविधान में तय व्यवस्था का पालन न करने से उत्पन्न हुआ है। दुनिया में दो ही ऐसे देश हैं जहां राष्ट्रीय कर्ज की सीमा संसद तय करती है, अमेरिका और डेनमार्क। इनके संविधान निर्माताओं ने सरकारों पर आर्थिक लगाम रखने का प्रविधान इसीलिए किया, ताकि वे संसद की अनुमति लिए बिना देश के भविष्य को गिरवी रखकर मनमाना कर्ज न ले सकें।
फिलहाल अमेरिका की राष्ट्रीय ऋण सीमा 31,400 लाख करोड़ डालर है जो उसकी जीडीपी के सवा गुने के करीब है। लगातार चल रहे बजट घाटों के कारण सरकारें लगातार कर्ज लेती जा रही हैं जिसकी वजह से देश का कर्ज जनवरी में ही अपनी तय सीमा को छू चुका था। तब से बाइडन सरकार ऋण सीमा बढ़ाए जाने की प्रतीक्षा कर रही है, लेकिन पिछले संसदीय चुनाव के बाद से कांग्रेस में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है।
अमेरिका में 1917 में एक कानून बना कि सरकार एक सीमा से अधिक कर्ज नहीं ले सकती है। इसमें अब तक 78 बार बदलाव किया जा चुका है। सरकार किसी भी पार्टी की रही हो यह सीमा बढ़ती रही है। इसके लिए संसद की अनुमति लेनी होती है। फिलहाल कर्ज लेने की सीमा 31.4 लाख करोड़ डॉलर है। लेकिन एक बार फिर सरकार की देनदारियां कमाई से ज्यादा हो गई हैं।