प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में पिछले नौ वर्षों के दौरान सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं ने भारत के बुनियादी ढांचे को बहुत ही सुदृढ़ किया है।
श्रम और पूंजी दोनों प्रारूपों में विशाल संसाधनों के कारण, भारत ने बुनियादी ढांचे में निवेश में बहुत ही आशाजनक परिणाम दिखाए हैं। इसलिए भारत में औद्योगिक और व्यावसायिक बुनियादी ढाँचे में लगातार वृद्धि हुई है जो महत्वपूर्ण रिटर्न दे रहा है और देश के आर्थिक विकास में योगदान दे रहा है।
मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर टिकाऊ विकास की पहली शर्त है। बिजली, सड़क, रेल, पोर्ट, एयरपोर्ट, शहरी इन्फ्रा आदि में सुधार होने से दूसरे सेक्टर को गति मिलती है। माना जाता है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में जीडीपी का एक प्रतिशत निवेश किया जाए तो जीडीपी दो प्रतिशत बढ़ेगी। थोड़ी देर से सही, भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस बढ़ा है और इसके नतीजे भी दिखने लगे हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 31 जनवरी को संसद के संयुक्त सत्र में कहा कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एविएशन मार्केट बन चुका है।
वित्त वर्ष 2014-15 के अंतरिम बजट में तत्कालीन यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए 1,81,134 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। वर्ष 2023-24 के बजट में पूंजीगत व्यय के लिए 10 लाख करोड़ से तुलना करें तो इन नौ वर्षों में बजट आवंटन 5.5 गुना बढ़ा है।
सीआईआई के अनुमान के मुताबिक 2047 तक भारत के दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने की उम्मीद है, जो 2022 में लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर से लगभग 35- 40 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ है, जो 2010 के बाद से लगभग 2 गुना बढ़ गया है। इसके अलावा, देश के औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई है। 2010 से 56% की वृद्धि हुई है, जिसने शहरीकरण की गति को पूरक बनाया है जो 2047 तक तेज होने की उम्मीद है।
विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट का अनुमान है कि यदि भारत को अपनी तेजी से बढ़ती शहरी आबादी की जरूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा करना है तो भारत को शहरी बुनियादी ढांचे में अगले 15 वर्षों में 840 बिलियन डॉलर – या औसतन 55 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष – का निवेश करने की आवश्यकता होगी।