उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अपराधियों और माफियाओं की कमर तोड़ने के लिए लगातार कार्रवाई कर रही है। प्रशासन की सख्ती का आलम ये है कि, अपराधियों द्वारा खुद ही आकर थाने में सरेंडर करने के कई मामले सामने आ चुके हैं, वहीं जो अपराधी फरार हैं, उनकी खोजबीन तेज कर दी गई है और साथ ही उनकी सम्पत्तियों पर भी शिकंजा कसा जा रहा है। अब यूपी पुलिस ने फरार चल रहे गोरखपुर के 50 हजार रुपए के इनामी माफिया विनोद उपाध्याय पर शिकंजा कसा है।
आज यानी शनिवार को गोरखपुर विकास प्राधिकरण (GDA) ने फरार माफिया के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए उसका अवैध कब्जा ध्वस्त कर दिया और लगभग सात हजार वर्ग फीट की बेशकीमती भूमि मुक्त करा ली। रिपोर्ट के अनुसार, जिले के गुलरिहा थाना क्षेत्र के सलेमपुर मोगलहा में माफिया विनोद उपाध्याय ने इस भूमि पर कब्जा कर रखा था। इस पर उसने कुछ अवैध निर्माण भी कराया था। शनिवार को भारी सुरक्षा के बीच GDA ने यह निर्माण ध्वस्त कर दिया। बताया जा रहा है कि, लगभग 7000 वर्ग फीट जमीन पर विनोद ने कब्जा कर रखा था।
बता दें कि पुलिस ने माफिया विनोद उपाध्याय के खिलाफ FIR दर्ज कर उस पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा है। लगभग 36 आपराधिक मामलों में वंचित विनोद उपाध्याय कई दिनों से फरार चल रहा है। गोरखनाथ क्षेत्र स्थित धर्मशाला बाजार का रहने वाला विनोद उपाध्याय धर्मशाला बाजार का हिस्ट्रीशीटर है। वह गोरखपुर सदर सीट से MLA का चुनाव भी लड़ चुका है। उसने मोगलहा स्थित जमीन पर अवैध कब्जा किया था।
इस कांड के बाद चर्चा में आया विनोद
विनोद उपाध्याय ने अपनी पहचान छात्र राजनीति के जरिए जमाई थी। बात 2002 विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव की है। इसमें विनोद ने अपने समर्थन के साथ छात्रसंघ पदाधिकारी का चुनाव एक व्यक्ति को लड़वाया था। चुनाव में उसकी जीत के साथ ही विनोद के हनक का सिक्का बाजार में चलने लगा। यही नहीं दो साल बाद इसने फिर से छात्रसंघ के प्रमुख पद पर अपने एक प्रत्याशी को लड़वाया। लेकिन लिंगदोह समिति के नियमों की वजह से वह चुनाव नहीं लड़ सका। इस बीच उसकी मौजूदगी जरायम की दुनिया में हो चुकी थी।
वर्ष 2003 में विश्वविद्यालय के छात्रसंघ का चुनाव हुआ था। उस समय छात्रसंघ राजनीति प्रत्याशी कम और उसके समर्थकों की दबंगई पर आधारित हुआ करती थी। विनोद ने अपने साथी को चुनाव लड़ाया। इस समय तक विनोद के ऊपर आपराधिक मामले बहुत दर्ज नहीं थे और न ही विनोद को अपराधी की श्रेणी में गिना जाता था। चुनाव के पीछे मंशा थी कि अगर उसका प्रत्याशी चुनाव जीतता है तो उसकी धमक अपने आप बढ़ जाएगी। हुआ भी यही।
चुनाव बड़ी सरगर्मी से संपन्न हुआ। मतदान के दिन विश्वविद्यालय गेट के पास उसके और विरोधी गुट के प्रत्याशी के बीच जमकर मारपीट भी हुई। कहा जाता है कि विरोधी गुट के प्रत्याशी को ही विनोद के गुट ने जमकर पीट दिया था। चुनाव हुआ और परिणाम विनोद के पक्ष में आया। इसी जीत के बाद उसका कद उसके वर्ग के मनबढ़ लोगों के बीच बढ़ने लगा। 2006 में एक बार फिर छात्रसंघ का चुनाव हुआ। लेकिन इस बार इनके पक्ष के प्रत्याशी को लिंगदोह की शर्तों की वजह से मैदान से हटना पड़ा। इसी के बाद 2007 में पीडब्लूडी कांड हो गया। इस घटना में विनोद के साथ छात्रसंघ का प्रत्याशी भी आरोपी बना था। वर्तमान में आरोपित भाजपा से राजनीति का दावा करता है।
बसपा शासनकाल में बनवाया था अपना चेयरमैन
बसपा शासन काल में विनोद उपाध्याय ने अपनी हनक और बढ़ा ली थी। उस समय जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन के पद पर उसने एक पूर्व विधायक के पक्ष के प्रत्याशी को हरवाकर अपने पक्ष के प्रत्याशी को चेयरमैन बनवाया था। इसके बाद उसकी हनक अपने लोगों के बीच औ बढ़ गई थी।
अपराधी विनोध उपाध्याय एक समय था युवाओं की पहली पसंद बना हुआ था। 2006 के एमजीपीजी छात्रसंघ चुनाव परिणाम के बाद नई कार्यकारिणी के शपथ ग्रहण समारोह में मुख्य अतिथि बनकर विनोद पहुंचा था। उसने नई कायकारिणी के पदाधिकारियों के पद की शपथ दिलाई थी।
युवाओं की टीम बनाई
विनोद 2007 पीडब्लूडी कांड के बाद अक्सर चर्चा में रहने लगा। उसके साथ युवाओं की लंबी टीम भी थी। जो इसके साथ लाईसेंसी असलहों को लेकर चलती थी। शादी विवाह हो या अन्य समारोह इस टीम के सदस्यों के दम पर विनोद अपनी पहचान अलग बना लेता था। इसी के साथ के दो अपराधी गंगेज पहाड़ी और दीपक सिंह की हत्या कर दी गई थी।