तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे जेकेएलएफ (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) प्रमुख यासीन मलिक मामले में जेल प्रशासन ने ऐक्शन लिया है। जेल प्रशासन की तरफ से सुरक्षा में चूक के मामले में चार अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है। सस्पेंड किए गए अधिकारियों में 1 डिप्टी सुपिरटेंडेंट, 2 असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट और 1 अन्य अधिकारी शामिल हैं। इससे पहले यासीन मलिक के शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश होने से सनसनी मच गई थी। इस मामले को लेकर तिहाड़ जेल प्रशासन की काफी आलोचना होने लगी थी। दिल्ली कारागार विभाग ने शुक्रवार को इसे ‘पहली नजर में कुछ अधिकारियों की लापरवाही’ का मामला बताया था।
तीन दिन में सौंपनी थी रिपोर्ट
आधिकारिक बयान के अनुसार, उपमहानिरीक्षक (कारागार-मुख्यालय) राजीव सिंह को लापरवाही का पता लगाने और गलती करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की जिम्मेदारी दी गई थी। साथ ही तीन दिन के भीतर महानिदेशक (कारागार) को रिपोर्ट सौंपने की बात कही गई थी। यासीन को आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराने के मामले में दोषी करार दिया गया है। मलिक को अदालत के आदेश के बगैर सशस्त्र सुरक्षाकर्मियों की निगरानी में जेल के वाहन में हाई सिक्योरिटी वाले सुप्रीम कोर्ट के परिसर में लाया गया। मलिक के अदालत कक्ष में कदम रखते ही वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए।
कोर्ट ने नहीं दी थी अनुमति
मलिक की मौजूदगी पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हैरानी जताई थी। उन्होंने जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेच से कहा कि हाई रिस्क वाले दोषियों को अपने मामले की व्यक्तिगत तौर पर पैरवी करने के लिए अदालत कक्ष में आने की मंजूरी देने की एक प्रक्रिया होती है। मेहता ने जब मलिक की अदालत कक्ष में मौजूदगी की ओर इंगित किया तो पीठ ने कहा कि उसने मलिक को कोई अनुमति नहीं दी। इसके अलावा व्यक्तिगत तौर पर अपने मामले की जिरह की अनुमति देने वाला कोई आदेश परित नहीं किया गया।