केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सोमवार को दोहराया कि सरकार मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के लिए तैयार है। लेकिन विपक्ष संसद में इस मुद्दे पर बहस से भाग रहा है।
मीडिया से बात करते हुए अनुराग ठाकुर ने कहा “”मैं विपक्ष से संसद के अंदर आने और चर्चा में भाग लेने का अनुरोध करता हूं। हम पहले दिन से चर्चा चाहते हैं। उन्हें (विपक्ष को) बातचीत करने से कौन रोक रहा है?… वे चर्चा में भाग लेने के बजाय चर्चा से भागते हैं।” इससे साफ पता चलता है कि वे राजनीति कर रहे हैं…”
#WATCH | Delhi: Union Minister Anurag Thakur says, "I request them to come inside Parliament and participate in discussions. We want discussions from day 1. What is stopping them (Opposition) from holding talks?… They only run away from discussions rather than taking part in… pic.twitter.com/LJ6kMxmT7T
— ANI (@ANI) July 31, 2023
इसके अलावा रविवार को भी ठाकुर ने एक ट्वीट में लिखा था कि “हम पूरी संवेदनशीलता के साथ मणिपुर पर चर्चा के लिए हमेशा तैयार हैं। मुझे उम्मीद है कि मणिपुर गए सभी सांसद (विपक्ष) कल सदन में चर्चा के लिए आएंगे। वे भागेंगे नहीं और अपना अनुभव साझा करेंगे।”
मणिपुर के साथ-साथ केंद्र की पिछली कांग्रेस सरकार का जिक्र करते हुए मंत्री ने कहा, “कांग्रेस शासन के दौरान कई महीनों तक मणिपुर बंद रहा। उस दौरान न तो प्रधानमंत्री और न ही गृहमंत्री ने कोई बयान दिया था।”
इससे पहले दिन में लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर मणिपुर की भाजपा सरकार के साथ-साथ केंद्र की भी आलोचना की और कहा कि दोनों सरकारों ने इस मामले पर अपनी आंखें बंद कर ली हैं।
विपक्षी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल में शामिल चौधरी ने कहा, “चाहे वह राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, वे (मणिपुर मुद्दे पर) कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं। दोनों सरकारों ने अपनी आंखें बंद कर ली हैं।”
दिल्ली रवाना होने से पहले विपक्षी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने इंंफाफल स्थित राजभवन में मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें पूर्वोत्तर राज्य में शांति बहाली का आग्रह किया गया।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल पूर्वोत्तर राज्य में मौजूदा संकट के लिए मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को दोषी ठहरा रहे हैं और उनकी बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं। मणिपुर में 3 मई को जातीय संघर्ष भड़क उठा और तब से अब तक 150 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जबकि हजारों लोगों को राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है।