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जब हार सामने होती है, तो क्या कांग्रेस दलित नेताओं को करती है आगे? जानें पहले ऐसा कब हुआ

लोकसभा स्पीकर पद के लिए 26 जून को चुनाव होगा। एनडीए की ओर से ओम बिरला उम्मीदवार है तो वहीं इंडिया गठबंधन ने कांग्रेस सांसद के. सुरेश को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस के बारे में एक चीज साफ निकलकर सामने आई है कि जब हार सामने होती है तो वह दलित नेताओं को आगे करती है लेकिन जब जीत का क्रेडिट लेना होता है, तो गांधी परिवार।

1951 में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर जी के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद नेहरू कांग्रेस ने 1952 के चुनावों में बॉम्बे नॉर्थ में उनकी हार सुनिश्चित की। कांग्रेस ने फिर से भंडारा से 1954 के उपचुनाव में अंबेडकर जी की हार सुनिश्चित की। नेहरू ने उनके खिलाफ सक्रिय रूप से प्रचार किया और अंबेडकर चुनाव हार गए।

इसके बाद एक और उदाहरण है। 2002 में कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सुशील कुमार शिंदे को नामित किया, जिसमें वे हार गए। 2017 में कांग्रेस ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए मीरा कुमार को नामित किया, जिसमें वे हार गईं।

अब कांग्रेस ने एक दलित नेता के सुरेश जी को लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए नामित किया है। जबकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि इस चुनाव में सुरेश की हार होगी और ओम बिरला जीतेंगे क्योंकि नंबर एनडीए के पास है। ऐसे में चार उदाहरण बताने के लिए काफी है कि किस प्रकार से कांग्रेस जब मुश्किल में होती है, तो दलितों को आगे कर देती है और हार का ठीकरा भी उनके ऊपर फूटता है। लेकिन जब मजबूत स्थिति में होती है तो ऐसी रणनीति बनाती है कि जीत का क्रेडिट गांधी परिवार को जाए। अब के. सुरेश को उसने लोकसभा स्पीकर के लिए उम्मीदवार बनाया है लेकिन नंबर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास है और आसानी से ओम बिरला चुनाव जीत रहे हैं।

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