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मोदी सरकार की नीतियों के कारण भारत में एमएसएमई नौकरियां 20 करोड़ से अधिक, 12 महीनों में 66% की छलांग

समावेशी विकास के रास्ते भारत को विकसित देश बनाने में छोटे-मझोले उद्योगों यानि की एमएसएमई की अहम भूमिका है। विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि एमएसएमई पर फोकस किए बिना भारत विकसित देश नहीं बन सकता।

बताते चलें कि देश के 6.4 करोड़ एमएसएमई रोजगार बढ़ाने में बड़ा योगदान कर सकते हैं जिससे घरेलू खपत बढ़ेगी। सस्ते इनोवेशन का हब बन कर ये मैन्युफैक्चरिंग निर्यात में भारत की भागीदारी बढ़ा सकते हैं।

सस्ते इनोवेशन का हब बन कर ये मैन्युफैक्चरिंग निर्यात में भारत की भागीदारी बढ़ा सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में इकाइयां लगने से माइग्रेशन कम होगा, इकोनॉमी संतुलित होगी और वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। लेकिन यह सब हासिल करने के लिए कुछ चुनौतियों से निपटना जरूरी है। छोटे उपक्रमों के लिए जगह का खर्च बहुत अधिक होता है, टेक्नोलॉजी के मामले में वे सालों पीछे हैं और इन सबसे निपटने के लिए उन्हें बैंक से कर्ज लेने में भी समस्या आती है। विशेषज्ञ पुरानी रेगुलेटरी व्यवस्था को भी उनके विस्तार में बाधक मानते हैं।

बताते चलें कि भारतीय अर्थव्यवस्था में छोटे-मझोले उपक्रमों के महत्व का अंदाजा इन आंकड़ों से मिलता है। एमएसएमई मंत्रालय की तरफ से दिसंबर 2023 में राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार जीडीपी में इनकी 29%, मैन्युफैक्चरिंग में 41% और निर्यात में 45% हिस्सेदारी है। मंत्रालय के उद्यम पोर्टल पर 4.63 करोड़ एमएसएमई रजिस्टर्ड हैं जिनमें 20 करोड़ से ज्यादा लोग काम करते हैं। रजिस्टर्ड उद्यमों में 67, 474मध्यम आकार वाले हैं।

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