प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहला डीप-सी ट्रांसशिपमेंट पोर्ट औपचारिक रूप से देश को सौंप दिया है। यह केलर के विझिंजम में 8,900 करोड़ की लागत से बना एक ऐसा पोर्ट है, जो भारत को विश्व के नक्शे पर पहचान दिलाने का काम कर सकता है। यह पोर्ट देश के लिए विकास और दुनिया से व्यापारिक कनेक्टिविटी के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह अपनी तरह की भारत में पहला पोर्ट है।
विझिंजम इंटरनेशनल डीपवॉटर मल्टीपर्पज सी-पोर्ट ने पिछले साल दिसंबर से ही कमर्शियल ऑपरेशन शुरू कर दिए थे। ये भारत का पहला डीपवॉटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट है। मतलब यहां बड़े जहाजों से कंटेनर उतारे जाते हैं और दूसरे जहाजों में ट्रांसफर होते हैं, ताकि वो अपनी मंजिल तक जा सके। इस पोर्ट की गहराई करीब 20 मीटर है और इसकी लोकेशन इंटरनेशनल शिपिंग रूट्स के काफी नजदीक है। यही नहीं, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में यह एकमात्र ट्रांसशिपमेंट हब है।
पहले फेज में अडानी विझिंजम पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड ने 3,000 मीटर लंबा ब्रेकवॉटर और 800 मीटर का कंटेनर बर्थिंग एरिया बनाया है। पोर्ट में 30 बर्थ हैं और हर साल यह 10 लाख कंटेनर मैनेज कर सकता है। इसके चार फेज 2028-29 तक पूरे हो जाएंगे, तब इसकी क्षमता 62 लाख TEU तक हो जाएगी। अब तक भारत में कोई भी डीपवॉटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट नहीं था। इसलिए भारत के करीब 75 फीसदी समुद्री व्यापार को श्रीलंका के कोलंबो, सिंगापुर, यूएई का जेबेल अली और ओमान का सलालाह जैसे विदेशी पोर्ट से होकर ट्रांसशिप किया जाता था।
यह पोर्ट भारत के समुद्री व्यापार की तस्वीर ही बदल सकता है। यह भारत को ग्लोबल ट्रेड में मजबूती देगा, लॉजिस्टिक्स में सुधार लाएगा और विदेशी पोर्ट्स पर हमारी निर्भरता कम करेगा। इस पोर्ट की नेचुरल डेप्थ 20 मीटर से ज्यादा है, जिससे ये MSC तुर्किये जैसे बड़े जहाजों को बिना गहराई बढ़ाए संभाल सकता है। इससे पोर्ट को गहरा करने की महंगी प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ेगी।