संसद के मॉनसून सत्र के दौरान सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के खराब कर्ज (NPA) को लेकर कई बातों का खुलासा किया। दरअसल संसद में सांसदों द्वारा पूछे संसदीय सवाल के जवाब में सरकार को PSU Banks के NPA को लेकर सारी जानकारी सदन के पटल पर रखनी पड़ी। वित्त मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के सकल एनपीए (Gross NPAs) में पिछले पाँच वर्षों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। मार्च 2021 में जहां एनपीए दर 9.11% थी, वहीं मार्च 2025 तक यह घटकर मात्र 2.58% पर आ गई है।
वित्त मंत्रालय और आरबीआई ने खराब ऋणों की पहचान, समयबद्ध समाधान और वसूली को लेकर एक समग्र रणनीति अपनाई है, जिसमें कई संस्थागत और संरचनात्मक सुधार शामिल हैं।
बयान में कहा गया है, “दिवालियापन और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के माध्यम लोन अनुशासन में एक बुनियादी बदलाव आया है, जिसने उधारकर्ता-लेनदार संबंधों को नया रूप दिया है। इस कानून ने प्रमोटरों से उनकी कंपनियों पर नियंत्रण छीन लिया है और जानबूझकर चूक करने वालों को समाधान प्रक्रिया में भाग लेने से रोक दिया है। इसके अतिरिक्त, कॉर्पोरेट देनदारों के व्यक्तिगत गारंटर अब आईबीसी के अंतर्गत आते हैं।”