25 नवंबर को एक बार फिर अयोध्या इतिहास रचने वाला है। दरअसल इस दिन विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाएगा और इस दिन राम मंदिर के शिखर पर केसरिया रंग का ध्वज फहराया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ध्वजारोहण करेंगे। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि त्रेता युग की पुनर्स्मृति जैसा अद्भुत दृश्य माना जा रहा है।
ध्वजारोहण के दिन अनेक वैदिक क्रियाएं संपन्न की जाएंगी जैसे देवी-देवताओं का आवाहन, पंचदेव पूजन, नवग्रह शांति, और विशेष हवन। तकनीकी रूप से भी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं- ध्वज के आयाम, दंड की क्षमता, रस्सियों की मजबूती, रथयात्रा की व्यवस्था, सुरक्षा प्रबंधन और 600 किलो प्रसाद की तैयारी सब कुछ बारीकी से देखा जा रहा है। मेहमानों की बात करें तो प्रधानमंत्री सहित देशभर के विशिष्ट जन यहां पहुंचेंगे, परंतु इस बार विशेष प्राथमिकता अयोध्या के स्थानीय नागरिकों को दी गई है। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का मानना है कि अयोध्या वासी स्वयं भगवान राम के प्रिय हैं और इस ऐतिहासिक क्षण के प्रथम सहभागी वही होने चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिन न सिर्फ राम मंदिर के शिखर पर ध्वज पताका फहराएंगे, बल्कि वह उस लंबे संघर्ष, आंदोलन और तपस्या के भी साक्षी बनेंगे, जिनकी परिणति आज भव्य राम मंदिर के रूप में सामने खड़ी है। राम मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। 80 के दशक में वह आरएसएस के प्रचारक के रूप में सक्रिय थे और भव्य राम मंदिर निर्माण के संकल्प को साकार करने के लिए लगातार संगठनात्मक बैठकों, अभियानों और रणनीतियों में हिस्सा लेते रहे।
1987 से 1989 के बीच आंदोलन ने जब नई गति पकड़ी, तब नरेंद्र मोदी ने कई अहम जिम्मेदारियां निभाईं। 1990 में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की ऐतिहासिक रामरथ यात्रा ने आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया था। इस यात्रा में नरेंद्र मोदी मुख्य प्रबंधक और रूट समन्वयक की भूमिका में थे।
5 अगस्त 2020 को भूमिपूजन और 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा उनके हाथों से संपन्न होना इस बात का प्रमाण है कि आंदोलन से लेकर मंदिर के पूर्ण स्वरूप तक वह लगातार जुड़े रहे। अब जब मंदिर अपने पूर्ण स्वरूप के अंतिम चरण में है, तब भी पीएम के रूप में नरेंद्र मोदी सनातन धर्म के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
