आम आदमी की रसोई से रौनक गायब है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम ऊपर ही चढते जा रहे हैं। उसके ऊपर रसोई गैस की कीमत में बढोत्तरी से दोहरी मार पड रही है। इस साल मार्च से लेकर अब तक रसोई गैस के दाम चार बार बढ चुके हैं। इस तरह पिछले एक साल में घरेलू रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत दौ सौ चौवालीस रूपए तक बढ चुकी है। तेल कंपनियों को यह बढोत्तरी अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन की चढती कीमतों के मद्देनजर करनी पडी हैं। आगे भी इसमें कमी के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। इसी तरह पैट्रोल और डीजल के दाम ऊपर चढने शुरू हुए और हाहाकार मचने लगा तो केंद्र और राज्य सरकारों ने उनके करों में कटौती कर कुछ राहत देने की कोशिश की। ईंधन की बढती कीमतों का असर तमाम वस्तुओं पर पडता है, जिसके चलते मंहगाई पर काबू पाना कठिन बना रहता है।इस समय खुदरा से अधिक थोक मंहगाई बेकाबू है। इसलिए सरकार की चिंता स्वाभाविक है।
मंहगाई रोकने के लिए केंद्र ने कुछ राहत के कदम भी उठाए है, जैसे कुछ वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगाई है, कुछ आयात पर शुल्क घटाए हैं। अभी खाद्य तेलों पर दस रूपए की कटौती करने को कहा है। मगर ये कदम फौरी राहत भर दे सकते हैं। रसोई गैस पर सब्सिडी समाप्त कर दी गई है। यह केवल उज्जवला योजना का लाभ उठाने वालों को ही दी जाती है। इस तरह मध्यवर्गीय परिवारों को रसोई का खर्च अब भारी पडने लगा है। उज्जवला योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त सिलेंडर जरूर बांटे गए थे, चुनाव के वक्त कुछ सरकारें त्यौहारों पर मुफ्त गैस देने की घोषणा भी करती देखी गई, मगर इससे गरीब की रसोई में रौनक लौटती नजर नहीं आ रही। जिन लोगों को उज्जवला योजना के तहत सिलेंडर बांटे गए थे, उनके पास उसमें गैस भराने के पैसें नहीं हैं। कई सर्वेक्षणों से स्पष्ट है कि गरीब परिवारों के लोग फिर से पांरपरिक ईंधन का इस्तेमाल करने लगे हैं। खुद सरकार का दावा है कि बहुत सारे परिवार मुफ्त राशन योजना पर निर्भर हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे सिलेंडर में गैंस कहां से भराएंगे। यानि गैस की खपत भी ज्यादा नहीं बढी है, फिर भी कीमत पर अंकुश लगाना चुनौती बना हुआ हैं। हालांकि सरकार ने व्यावसायिक सिलेंडर के दाम बढाने से बचने का प्रयास किया है, मगर वह पहले ही इतना बढ चुका है कि उससे मंहगाई रोकने में बहुत मदद नहीं मिल रही। खाने-पीने का कारोबार करने वालों के सामने वस्तुओं की कीमत बढाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इस तरह उनके ग्राहकों की संख्या पर असर पड रहा है। पहले ही लोग बेरोजगारी और मंदी की मार झेल रहे हैं, जिसके चलते उनकी कमाई नहीं बढ पा रही। उस पर मंहगाई की मार जीना दूभर कर रही है।
समस्या केवल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और ईंधन के दाम में बढोत्तरी से नहीं है। अर्थव्यवस्था को संभालने वाले सभी स्तंभ कमजोर हो चले हैं। अगर लोगों की कमाई बढेगी, तभी खपत भी बढेगी। खपत नहीं बढेगी, तो थोक मंहगाई चुनौती बनी रहेगी। यानि भारी उद्योगों के सामने संकट बना रहेगा, जिसके बल पर अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का प्रयास किया जाता हैं। इसलिए तदर्थ के बजाए स्थायी उपायों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश होनी चाहिए।