कर्नाटक में मुख्यमंत्री के लिए कांग्रेस में चल रहा नाटक अब लगभग खत्म हो चुका है। सीएम की कुर्सी के लिए दो धड़ों में बंटी कांग्रेस ने एक खास फॉर्मूले के बाद पूरे विवाद को सुलझा लिया है। इसी फॉर्मूले पर चलते हुए 5 दिन के नाटक के बाद कांग्रेस ने सिद्धारमैया को फिर से मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया है, जबकि कर्नाटक कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री होंगे।
बुधवार शाम तक डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया दोनों सीएम की कुर्सी के लिए अड़े हुए थे। खासकर कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के हीरो माने जा रहे डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री के सिवाय कोई और पद नहीं चाह रहे थे। कांग्रेस सिद्धारमैया के अहमियत को भी दरकिनार नहीं कर सकती थी। मसलन मामला बुरी तरह से उलझ चुका था। अंदाजा यहीं से लगा सकते हैं कि 13 मई को चुनाव नतीजे आ चुके थे, बुधवार शाम तक मुख्यमंत्री के नाम पर कांग्रेस में खूब माथापच्ची होती रही। दोनों धड़े अपने अपने नेताओं का समर्थन करने के लिए खड़े हुए थे। बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक मंथन और विचार विमर्श होता रहा।
कांग्रेस ने बनाया ढाई-ढाई साल CM का फॉर्मूला
समय बढ़ने के साथ कांग्रेस की टेंशन भी बढ़ती जा रही थी। मसलन मुख्यमंत्री को लेकर जारी राजनीतिक गतिरोध को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने एक फॉर्मूला बनाया, जिस पर दोनों धड़े राजी हो गए। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने ढाई-ढाई साल सीएम का दांव खेला है। पहले टर्म में सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम के अलावा 2 प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। यही नहीं, डीके शिवकुमार 2024 में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने रहेंगे। समझौते के अनुसार दूसरी टर्म में 25/11/2025 को डीके शिवकुमार को सीएम बनाया जाना है। हालांकि पहले डीके शिवकुमार ने कहा था कि उन्हें पहली टर्म में मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन यहां सिद्धारमैया उनसे आगे निकल गए। फिलहाल सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे और डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री।
आखिर क्यों राजी हुए शिवकुमार
कर्नाटक चुनाव की जीत के असली हीरो रहे डीके शिवकुमार को सभी मानते हैं की कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत में सबसे बड़ा हाथ डीके शिवकुमार का ही है, लेकिन इसके बावजूद आखिर डीके शिवकुमार इस ढाई साल के फोर्मुले पर कैसे राजी हुए ये बड़ा सोचने वाला मामला है, क्योंकि कांग्रेस का ये ढाई साल वाला झुनझुना छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी नेताओं को थमाया गया था, लेकिन ढाई साल बाद दोनों राज्यों के मुख्यामंत्रियो में से कोई भी कुर्सी छोड़ने को राजी नहीं हुआ, और ये सब देखने के बाद भी शिवकुमार इसके लिए राजी हो गए ये सोचने का विषय है.