जन की बात के संस्थापक प्रदीप भंडारी ने आज अपने शो के नए एपिसोड में भारत में हिदुओं और हिंदुत्व के खिलाफ हो रही गहरी साजिश का पर्दाफाश किया और बताया कैसे हिंदू आने वाले समय के साथ अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएगा। साथी इस एपिसोड में प्रदीप भंडारी ने यह भी बताया कि कैसे इस देश में मुस्लिम समुदाय के लिए धर्म देश के विकास से ऊपर है।
इस एपीसोड में प्रदीप भंडारी ने बताया कि, 2014 के दौरान इस देश में हिंदुओं ने सोचा कि भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा है। 2014 में जब अर्थव्यवस्था बहुत खराब स्थिति में थी, हिंदुओं ने सोचा कि उन्हें कुछ उम्मीद ढूंढनी चाहिए, तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचंड जनादेश के साथ सत्ता में आए। जब अधिकांश नागरिक परिवर्तन चाहते थे तो एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक आबादी थी जिसने परिवर्तन के लिए मतदान नहीं किया।
क्यों? ऐसा क्यों है कि एक हिंदू मतदाता के लिए विकास बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए विकास का पैमाना नहीं है?
अगर आप इस देश की जनसांख्यिकी को देखें, तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह तेजी से बदल रहा है। मैं आपको पश्चिम बंगाल का उदाहरण देता हूं। पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक आबादी की स्थिति वही है जो 1940 के दशक में थी। 1940 में, 29.48% आबादी मुसलमानों की थी। 1950 के दशक में, यह घटकर 19.46% रह गया। 1951 से, यह फिर से बढ़ना शुरू हुआ और 2011 की जनसंख्या जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 27.01% और आज के अनुमान के अनुसार बंगाल में 30% से अधिक आबादी मुस्लिम है।
प्रदीप भंडारी ने जिस का जवाब उदाहरण के साथ देते हुए कहा कि, वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण करने वाली पार्टियों के सेक्युलर नेताओं द्वारा देश में विकास और कई महत्वपूर्ण मुद्दा भटका जाते हैं आपको एक उदाहरण देते हैं जिस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा होती है वहां हिंदुओं के चुनाव जीतने की संभावना बहुत कम है। वहीं, अगर भारत में हिंदू बहुल क्षेत्र से कोई मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया जाता है और उसका विश्वसनीय कामकाजी प्रभाव होता है, तो उसे वोट भी मिलता है। कर्नाटक में, हमने देखा कि कैसे मुस्लिम कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हो गए, लिंगायत विभाजित हो गए लेकिन ऐसा क्यों है कि जहां 30% अल्पसंख्यक आबादी है, यह सुनिश्चित करती है कि एक उम्मीदवार या एक पार्टी जो हिंदू हितों की बात करती है, सत्ता में नहीं आती है।