त्योहारों के सीजन पर हर कंपनी अपना एक ख़ास विज्ञापन निकलती है। खासकर फैशन इंडस्ट्री में फेस्टिव सीजन के विज्ञापन काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होते है। इसी बीच फैशन ब्रांड फैब इंडिया ने अपना नया फेस्टिव कलेक्शन का एक विज्ञापन अपनी वेबसाईट पर लगाया है, जिसमे उन्होंने इस बार ‘स्वर्णिम’ शब्द का इस्तेमाल किया है। इसपर तंज करते हुए लेखिका शेफाली वैद्य ने एक ट्वीट किया है जिसमे उन्होंने फैब इंडिया के ही एक और पुराने विज्ञापन की तस्वीर भी पोस्ट की और लिखा ‘कोई अंतर दिखा दोनों में?’
दरअसल फैब इंडिया ने 2021 में दिवाली के त्योहारी सीजन पर एक फैशन कलेक्शन निकाला था जिसमे उन्होंने हिन्दू त्योहारों के इस्लामीकरण की पूरी कोशिश करते हुए उसका नाम ‘जश्न-ए-रिवाज़’ रखा था। हिंदुओं के त्योहार को इस तरह से उर्दू में पेश कर फैबइंडिया ने एक ट्वीट भी किया था जिसे अब वह डिलीट कर चुके हैं। नेटीजन्स के भारी विरोध के बाद इस ट्वीट को हटाया गया। वहीँ हिन्दुओं के भारी विरोध को देखते हुए फैब इंडिया को अपने कलेक्शन से ये नाम हटाना भी पड़ा था। जबकि इस बार उन्होंने पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए, और धार्मिक विरोध देखते हुए दिवाली के अपने कलेक्शन का नाम ‘स्वर्णिम’ रखा है।
शेफाली वैद्य ने फैब इंडिया पर तंज कसते हुए लिख ‘कोई अंतर दिखा इन दो विज्ञापनों में? जश्न-ए-रिवाज का नाम बन गया स्वर्णिम, पूजा थाली विज्ञापन में वापस आ गयी, दुःखी, मनहूस चेहरों की जगह अब हँसते मुस्कुराते प्रसन्न चेहरे आ गए और सबसे बड़ी बात, बिंदी वापस आ गयी!
हिंदुओ के एकजुट प्रतिकार की शक्ति दिखी?
केवल दो वर्षों में फैब इंडिया बिल्कुल अलग राग आलापने लगा!
बिल्कुल साफ स्पष्ट शब्दों में कहते रहिए, अगर किसी को हिंदुओ का पैसा चाहिए तो हिंदुओ की भावनाओं का सम्मान करना ही पड़ेगा! आपके #NoBindiNoBusiness कहने का असर होता है! हर बार कहते रहिए, तब तक जब तक हर विज्ञापनदाता तक सन्देश पहुँच नहीं जाता।
कोई अंतर दिखा इन दो विज्ञापनों में?
जश्न-ए-रिवाज का नाम बन गया स्वर्णिम, पूजा थाली विज्ञापन में वापस आ गयी, दुःखी, मनहूस चेहरों की जगह अब हँसते मुस्कुराते प्रसन्न चेहरे आ गए और सबसे बड़ी बात, बिंदी वापस आ गयी!
हिंदुओ के एकजुट प्रतिकार की शक्ति दिखी?
केवल दो वर्षों में… pic.twitter.com/TqcRM0DoC7
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) October 14, 2023
आपको बता दें पिछली बार जब फैब इंडिया ने हिन्दू त्यौहार के इस्लामीकरण की कोशिश की थी तब हिन्दू समाज को काफी ज्यादा गुस्सा आया था। उस वक़्त भी शैफाली वैध ने एक ट्वीट कर लिखा था “वाह फैबइंडिया न्यूज बहुत बढ़िया काम कर रहे हो दिवाली में से हिंदुत्व निकालने के लिए। इसे प्रेम और प्रकाश का त्योहार कहते हैं, टाइटल देते हो- जश्न ए रिवाज, मॉडल्स बिंदी नहीं पहनतीं लेकिन चाहते हो कि इतने मंहगे प्रोडक्ट खरीदें वो भी हिंदू परंपरा के सम्मान के नाम पर।”
Wow @FabindiaNews great job at de-Hinduising Deepawali! Call it a ‘festival of love and light’, title the collection ‘Jashn-e-Riwaaz’, take Bindis off foreheads of models but expect Hindus to buy your overpriced, mass produced products in the name of ‘homage to Indian culture’! https://t.co/S47g1ArUbB
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) October 18, 2021
भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने मामले को उठाते हुए लिखा था ‘दीपावली कोई जश्न-ए-रिवाज नहीं है। हिंदू त्योहार का इस्लामीकरण, ऐसी मॉडलों का प्रदर्शन जिन्होंने हिंदू परिधान न पहने हों, सबका बहिष्कार होना चाहिए और फैबइंडिया जैसे ब्रांड को ऐसी हरकत के लिए आर्थिक हर्जाना चुकाना चाहिए।
Deepavali is not Jash-e-Riwaaz.
This deliberate attempt of abrahamisation of Hindu festivals, depicting models without traditional Hindu attires, must be called out.
And brands like @FabindiaNews must face economic costs for such deliberate misadventures. https://t.co/uCmEBpGqsc
— Tejasvi Surya (@Tejasvi_Surya) October 18, 2021
गौरतलब है की फैब इंडिया इकलौता ऐसा ब्रांड नहीं है जिसने त्योहारों के सीजन में हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ किया, बल्कि तनिष्क, भारत मेट्रीमोनी, मिन्त्रा, सिएट टायर्स आदि कई कम्पनियाँ इस तरह के विज्ञापन निकाल चुकी हैं।
ऐसे विज्ञापनों या कैंपेन का हिंदुओं द्वारा विरोध किया जाता है तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से लेकर क्रिएटिव फ्रीडम तक, सारे संभावित कुतर्क दिए जाते हैं। एक महा कुतर्क यह दिया जाता है कि विरोध करने वालों को क्रिएटिविटी की समझ नहीं है। प्रश्न यह है कि; यदि ऐसे विज्ञापन बनाने वालों को हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं की समझ नहीं है तो हिंदुओं को उनकी तथाकथित क्रिएटिविटी की समझ होनी आवश्यक क्यों है? प्रश्न यह भी है कि क्रिएटिविटी के चक्कर में बार-बार धार्मिक भावनाएँ भड़काना आवश्यक क्यों है? सारी क्रिएटिविटी क्या हिंदू देवी-देवताओं के चित्रण में ही है? विज्ञापन बनाने वाले लोग इतने मूढ़ तो नहीं हैं जो समझते नहीं कि उनके बनाए ऐसे विज्ञापनों का क्या असर हो सकता है।
प्रश्न यह उठता है कि इन ‘क्रिएटिव’ लोगों द्वारा कितने दिनों तक ऐसे विज्ञापनों का विरोध करने वाले हिंदुओं को क्रिएटिविटी के प्रति नासमझ बताकर काम चलाया जाएगा? कितने दिनों तक हिंदुओं के इस प्रश्न को नजरअंदाज किया जाएगा कि; ये क्रिएटिव लोग और किन्ही धर्मों के देवी देवताओं को लेकर अपनी क्रिएटिविटी का प्रदर्शन क्यों नहीं करते? खैर फिलहाल फैब इंडिया के नए कलेक्शन को देखकर तो लगता है इन कम्पनियों को अब धीरे धीरे ही सही अक्ल आ रही है।