वीर सावरकर पर एक नई किताब आ रही है।लेखक कमलाकांत त्रिपाठी 20 अप्रैल, 2024 को अपनी नई पुस्तक “विनायक दामोदर सावरकर: नायक बनाम प्रतिनायक” पाठकों के सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं। सावरकर पर यह पुस्तक उनके जीवन के संघर्षों और उनके राष्ट्र के निर्माण में भूमिका को स्पष्ट और निष्पक्ष रूप से समझाने का प्रयास करती है। उनके चारों ओर घूमते विवादों के बावजूद, यह उनके योगदान को यथार्थ रूप से प्रस्तुत करने और राजनीतिक पक्षपात से होने वाली किसी भी गलतफहमी को सुधारने का लक्ष्य रखती है।
पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी
प्रस्तुत पुस्तक का लक्ष्य सावरकर के संघर्षमय जीवन के कुछ मुद्दों पर सायास उत्पन्न किए गए विवाद के घटाटोप से उन्हें मुक्त कर, राष्ट्रीय जीवन में उनके तात्विक योगदान के समग्र और वस्तुपरक आकलन का एक विनम्र प्रयास है। यह राजनीति-प्रेरित क्षुद्रीकरण के सुनियोजित अभियान से जो भ्रम उत्पन्न किया गया है, उचित परिप्रेक्ष्य में तथ्यपरक परीक्षण और वस्तुगत विमर्श द्वारा उसके समाहार का निष्ठावान उपक्रम भी है।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य धारा के स्खलन से एक भयावह रिक्ति उत्पन्न हुई थी जिसके पीछे कांग्रेस-नेतृत्व के हवाई आदर्शवाद एवं ऐतिहासिक यथार्थ की समझ का दुर्भाग्यपूर्ण अभाव था। सावरकर ने उस रिक्ति को भरने का ऐतिहासिक दायित्व निभाया। उस रिक्ति के कई जटिल कारण थे, जो कांग्रेस और मुस्लिम लीग के उद्भव और विकास की परस्पर विरोधी ऐतिहासिक धाराओं में अनुस्यूत थे। सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा को इस भूमिका के निर्वाह में लीग के साथ-साथ कांग्रेस से भी द्वंद का सामना करना पड़ा। किंतु इस प्रक्रिया में सावरकर-नीत महासभा के सक्रिय होने में काफी विलंब हो चुका था। लिहाजा, आजादी के साथ रक्तरंजित विभाजन को रोका नहीं जा सका, जिसने इस उपमहाद्वीप के भविष्य को दीर्घ-कालीन अशांति और हिंसा के भँवर में डाल दिया। प्रस्तुत पुस्तक इस त्रासदी के उत्सव के खुलासे का एक विनम्र प्रयास भी है।
हिंदी अकादमी, दिल्ली से श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (1991) और बेलगाम में संगति साहित्य अकादमी से भारतीय भाषा पुरस्कार (2003) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित कमलाकांत त्रिपाठी जी विनायक दामोदर सावरकर: नायक बनाम प्रतिनायक किताब में सावरकर के जीवन में गहराई से प्रवेश करते हैं तथा उनके संघर्षों और योगदान को समग्र दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करते हैं।
त्रिपाठी जी की पुस्तक “विनायक दामोदर सावरकर”, सावरकर के व्यक्तित्व और शैली के एक व्यापक दृष्टिकोण को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो महत्वपूर्ण जानकारी के साथ कहानी को समृद्ध करता है और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य समझ में एक अवरोध की उत्पत्ति पर विचार करता है, कांग्रेस और मुस्लिम लीग की भूमिकाओं को उजागर करते हुए।