प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस के मौके पर आयोजित खास कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यहां उनके साथ मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के प्रधान जगदीश सिंह झींडा भी मौजूद रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर तीर्थ पर पहुंचकर सबसे पहले पंचजन्य स्मारक का लोकार्पण रिमोट का बटन दबाकर किया। इसके बाद उन्होंने महाभारत अनुभव केंद्र का अवलोकन किया।
इस मौके पर पीएम मोदी ने भगवान कृष्ण के पवित्र शंख के सम्मान में नवनिर्मित ‘पंचजन्य’ स्मारक का उद्घाटन किया। उन्होंने इस खास मौके पर श्री गुरु तेग बहादुर जी के चरणों में एक स्मृति डाक टिकट और विशेष सिक्का भी जारी किया।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि 5-6 साल पहले एक और अद्भुत संयोग बना था। साल 2019 में 9 नवंबर को जब राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया था तो उस दिन मैं करतारपुर साहिब कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए डेरा बाबा नानक में था। मैं यही प्रार्थना कर रहा था कि राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो, करोड़ों रामभक्तों की आकांक्षा पूरी हो और हम सभी की प्रार्थना पूरी हुई,उसी दिन राम मंदिर के पक्ष में निर्णय आया। अब आज जब अयोध्या में धर्म ध्वजा की स्थापना हुई है,तो फिर मुझे सिख संगत से आशीर्वाद लेने का मौका मिला है। अभी कुछ देर पहले कुरुक्षेत्र की भूमि पर पांचजन्य स्मारक का लोकार्पण भी हुआ है। कुरुक्षेत्र की इसी धरती पर खड़े होकर भगवान श्रीकृष्ण ने सत्य और न्याय की रक्षा को सबसे बड़ा धर्म बताया था।
पीएम मोदी ने कहा कि श्री कृष्ण ने कहा था कि ‘स्वधर्मे निधनं श्रेयः’अर्थात सत्य के मार्ग पर अपने धर्म के लिए प्राण देना भी श्रेष्ठ है। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने भी सत्य, न्याय और आस्था की रक्षा को अपना धर्म माना और इस धर्म की रक्षा उन्होंने अपने प्राण देकर की। श्री गुरु तेग बहादुर को नमन करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि उनके जैसे व्यक्तित्व इतिहास में विरले ही होते हैं। उनका जीवन,उनका त्याग,उनका चरित्र बहुत बड़ी प्रेरणा है। मुगल आक्रांताओं के उस काल में गुरु साहिब ने वीरता का आदर्श स्थापित किया। इसलिए, उनका मन तोड़ने के लिए गुरु साहिब को पथ से डिगाने के लिए उनके सामने उनके तीन साथियों भाई दयाला जी,भाई सतीदास जी और भाई मतिदास जी की निर्ममता से हत्या की गई। लेकिन,गुरु साहिब अटल रहे,उनका संकल्प अटल रहा। उन्होंने धर्म का रास्ता नहीं छोड़ा। तब की अवस्था में गुरु साहिब ने अपना शीश धर्म की रक्षा को समर्पित कर दिया।
