जन की बात ने कैराना लोकसभा उपचुनाव 2018 में सबसे पहले एग्जिट पोल में बताया था कि भाजपा जीती हुई लोकसभा सीट गवाने जा रही है। जो नतीजों के दिन 31 मई को सच साबित हो गया।
जन की बात ने 2019 के शुरू होते ही त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों से लेकर कर्नाटका जैसे बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव के सटीक आंकलन अपने ओपिनियन पोल में और एग्जिट पोल के माध्यम से देश के सामने रखते हुए पहले ही इतिहास रच दिया था।
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— Jan Ki Baat (@jankibaat1) May 28, 2018
राज्यों के विधानसभा के सटीक आंकलन के बाद,
जन की बात के ‘फाउंडर प्रदीप भंडारी’ और उनके टीम के सदस्यों ने कैराना उपचुनाव को भी उतनी ही तवज्जो देते हुए और उतनी ही शिद्दत से जमीन पर उतर कर, वहां की जनता से चुनाव के समीकरणों को समझा और देश के सामने सही आंकलन के साथ सारी राजनीतिक हलचलों को भी समझया।
जन की बात के फाउंडर एंड सीईओ प्रदीप भंडारी ने राष्ट्रीय मीडिया में ना सिर्फ सही आंकलन और समीकरणों को समझाया बल्कि उम्मीदवार के जीत के मार्जिन को भी चुनाव नतीजों से पहले रखकर अपनी जमीनी समझ बूझ का लोहा मनवाया ।
क्यों बना कैराना उपचुनाव इतना महत्वपूर्ण ?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीति का केंद्रबिंदु मानी जाने वाली कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव 28 मई को संपन्न हुए। उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद खाली हो गयी थी। हरियाणा की सीमा के आसपास बसा हुआ कैराना शामली जिले का हिस्सा है।
कैराना लोकसभा सीट भी है और विधानसभा भी। कैराना लोकसभा के अंतर्गत शामली जिले की तीन और सहारनपुर जिले की दो विधानसभाएं आती हैं।
यह उपचुनाव देश भर में हुए उप-चुनावों से अलग रहा, जातीय समीकरण और राजनैतिक प्रतिद्वंदता के नए-नए आयाम यहाँ पर देखने को मिले।
क्या कहती है जन की बात कैराना की ग्राउंड रिपोर्ट ?
कैराना लोकसभा का उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए एक अहम चुनाव के रूप में देखा जा रहा है। यहाँ के सांसद रहे हुकुम सिंह के निधन के बाद बीजेपी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा गया था, वहीँ साझा विपक्ष की उमीदवार तबस्सुम बेगम राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनावी मैदान में थीं।
इस उप चुनाव में जातीय समीकरणों को साधने की भरपूर कोशिश विपक्ष द्वारा की गयी। कैराना उप चुनाव में बीजेपी का मंत्र- मंत्री, मुख्यमंत्री, कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा था। वहीँ विपक्ष ने डोर टू डोर प्रचार का सहारा लिया ।
मुद्दे जो रहे इस चुनाव में हावी
कैराना की जमीनी हालत की बात करें तो यहाँ पर सदियों से जातीय समीकरण हावी रही है लेकिन अब यहाँ पर विकास का मुद्दा भी सामने आ रहा है। कैराना उप चुनाव में गन्ना किसानों का मुद्दा सब पर हावी रहा।
गौरतलब हो कि शामली जिले के थाना भवन सीट का यूपी विधानसभा में प्रतिनिधत्व करने वाले विधायक सुरेश राणा के प्रदेश सरकार में गन्ना विकास मंत्री बनने के बाद गन्ना किसानों की उम्मीदें उनसे जुड़ी थीं लेकिन लोगों को निराशा ही हाथ लगी। सरकार ने चीनी मीलों द्वारा किसानों का गन्ना खरीदे जाने के 14 दिन के भीतर उनका भुगतान कराने की बात कही थी लेकिन किसानों की शिकायत है कि बिक्री के महीनों बाद भी आज तक किसान अपने भुगतान के लिए तरस रहे हैं।
कैराना का जातीय समीकरण
कैराना लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण कुछ इस प्रकार है:-
कुल वोटर: 16 लाख 80 हजार (लगभग)
मुस्लिम: 5.7 लाख
जाट: 1.6 लाख
कश्यप: 2 लाख
दलित(जाटव): 1.6 लाख
गैर जाटव दलित: 90 हजार
गुर्जर: 1.4 लाख
सैनी: 1 लाख
बनिया: 65 हजार
ब्राह्मण: 60 हजार
ठाकुर: 35 हजार
अन्य(प्रजापति, पाल, बावरिया, सिख, जैन आदि): 1 लाख
16 लाख वोटरों वाली इस लोकसभा में लोगों की जुबान पर जातिगत राजनीति का रंग जमके चढ़ गया है। मुस्लिम, दलित और जाट ध्रुवीकरण का फायदा साझा विपक्ष की उमीदवार तबस्सुम बेगम को मिल रहा है।
वहीँ पर अगड़ी जातियों, अति पिछड़ी और गुर्जरों का वोट बीजेपी को मिल रहा है। मृगांका सिंह के गुर्जर समुदाय से आने की वजह से गुर्जर उनके साथ लामबंद हो गये हैं। वहीँ शाक्य, सैनी, प्रजापति आदि अति पिछड़ी जातियों का पुरजोर समर्थन बीजेपी को मिल रहा है।
वीवीपैट मशीनों की खराबी भी बनी क्षेत्र में बड़ा मुद्दा
कैराना लोकसभा उपचुनाव में 42 से 45 डिग्री तापमान के बीच वोटिंग हुई। भीषण गर्मी और मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा रमजान में रोजा रखने के बाद भी पोलिंग बूथ पर मुस्लिम वोट अधिक दिखाई दिए। भयंकर गर्मी के बीच वीवीपैट मशीनों को भी लू लग गई। लगभग 15 प्रतिशत वोटिंग मशीने मतदान के दौरान ख़राब हो गयीं।
शामली, कैराना, गंगोह, नकुड, थानाभवन और नूरपुर के लगभग 175 पोलिंग बूथों से EVM-VVPAT मशीन के खराब होने के बाद सियासत गरमा गयी। कई बूथों पर देर रात तक मतदान चलता रहा। कैराना के हरपाली बूथ पर रात 11: 30 बजे वोटिंग खत्म हुई। देर रात तक संपन्न हुए मतदान में लगभग 61 प्रतिशत मतदान हुआ।
कैराना उप चुनाव के 10 प्रमुख बिंदु
- मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में बीजेपी को हराने के लिए हुए एकजुट, कहा ये है ‘वकार(वर्चस्व)’ की जंग।
- अजित सिंह के घर-घर जाकर प्रचार करने की वजह से आरएलडी के साथ 50% से अधिक जाट हुए लामबंद।
- निचली दलित जाति के मतदाता इन कारणों से संयुक्त विपक्ष के के साथ हुए लामबंद-
>मायावती
>भीम आर्मी का दलित युवाओं में प्रभाव
> दलितों में असुरक्षा की भावना - बीजेपी के मूल मतदाता – सैनी, ब्राह्मण, बनिया और कश्यप ने बड़ी संख्या में नहीं किया मतदान, उप चुनाव में नहीं दिखा उत्साह।
- ईवीएम में खराबी से वोटिंग हुई प्रभावित मुस्लिम मतदाताओं की तुलना में अधिक हिन्दू मतदाता बिना वोट डाले ही चले गए घर वापस।
- Empty Box Theory के मुताबिक मुस्लिम, दलित और जाट मतदाताओं ने खाली पोलिंग बूथों को भरने का किया काम।
- गन्ना किसानों को समय पर (14 दिनों का वादा) भुगतान नहीं होना बना एक बड़ा मुद्दा।
- कानून और व्यवस्था में सुधार और महिलाओं की सुरक्षा सभी जाति और धर्म के लोगों द्वारा स्वीकार की गई।
- विधवा और वृद्धा पेंशन को सरकार ने किया बंद, गांवों में बना बड़ा मुद्दा।
- विपक्ष के एकजुट होने के बाद बीजेपी को 2019 के चुनाव में जीत के लिए हासिल करना होगा 50% प्रतिशत से अधिक वोट।
- प्रदीप भंडारी द्वारा कहा गया कि 50,000 के मार्जिन से तय होगा जीत-हार ।
जन की बात ने किया चुनाव परिणाम का सही आंकलन
जन की बात की टीम द्वारा चुनाव को कवर करने के बाद एग्जिट पोल लांच किया गया। कैराना उप चुनाव के लिए हमारे द्वारा दिए गए एग्जिट पोल के मुताबिक जातीय ध्रुवीकरण, जाट समीकरण और गन्ना किसानों के मुद्दों ने इस चुनाव को काफी प्रभावित करने वाली बात हुई साबित।
चुनाव नतीजे अब सबके सामने आ चुके हैं तबस्सुम बेगम आरएलडी के टिकट से 44617 वोट के मार्जिन के साथ 481181 मतदान लेकर मृगांका सिंह से जीत चुकी है ।
चुनाव नतीजे आते ही जन की बात ने फिर अपने आंकलन और चुनावी समीकरण के तथ्यों पर दिए बिन्दुओ के साथ फिर से, सही समीकरण देने में अपना लोहा मनवाया।