नई दिल्ली:
प्रदीप वॉइस के पहले एपिसोड में जन की बात के फाउंडर एंड सीईओ प्रदीप भंडारी ने बंगाल में हो रही हिंसा पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि बंगाल को हिंसा से बचाने की जरूरत है।
” बंगाल आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है” यहाँ डॉक्टरों पर हो रही हिंसा आज चिंता का विषय है। बंगाल में इलाज के दौरान एक मरीज की जान चली जाती है तो गुस्साये परिजनों के साथ करीब 200 लोगों की भीड़ डॉक्टर पर जानलेवा हमला करती है| परंतु दीदी इस नाकामयाबी को छुपा नहीं पा रही है और ना ही रोक पा रही हैं।
जब एक 80 साल के मरीज मोहम्मद सदीक को डॉक्टर बचाने में नाकामयाब रहे, फिर गुस्साई भीड़ ने डॉक्टर की हत्या कर दी। जिस पर ममता बनर्जी का शर्मनाक बयान आया कि यह बीजेपी के लोग हैं। जिसके विरोध में 100 से अधिक डॉक्टर धरने पर उतरे और ममता बनर्जी के खिलाफ पूरे देश से उन्हें डॉक्टरों का समर्थन मिला। इस व्यवहार के खिलाफ मीडिया का एक बड़ा तबका शांत है। जिसके पीछे उनका राजनीतिक एजेण्डा साफ नज़र आ रहा है।
बंगाल में राजनीतिक हत्या अब आम बन चुकी है। 2019 लोकसभा चुनाव तक बीजेपी के 40 कार्यकर्ता मारे गए, उसके बाद भी यह मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार रात को बीजेपी के 3 कार्यकर्ता सुकांतू मंडल, प्रदीप मंडल, तपन मंडल और तृणमूल कांग्रेस का एक कार्यकर्ता भी मारा गया।
आम लोग हो, किसी पार्टी के कार्यकर्ता या फिर पत्रकार बंगाल में कोई भी सुरक्षित नहीं है। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान रिपब्लिक भारत के रिपोर्टर श्रवण सिंह जब चुनाव कवर करने गए तो उन पर भी जानलेवा हमला हुआ।
2009 लोकसभा चुनाव में बंगाल के अंदर सुरक्षा बलों की 210 टुकडियां तैनात की गई थी। तो वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में ये संख्या बढ़कर 270 हो गई। परंतु 2019 लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा और भी बढ़ गया, जब शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव कराने के लिए बंगाल के अंदर 580 सुरक्षा बलों की टुकड़ियों को तैनात किया गया। 2014 लोकसभा से 2019 लोकसभा तक यह संख्या लगभग दो गुना हो गई, लेकिन फिर भी हिंसा नहीं रुकी।
2019 लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में पत्रकारों पर भी हमले हुए। 6 मई को भी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने पत्रकारों पर हमले किये। इन सबके बाद भी आज इस देश के तथाकथित क्रांतिकारी पत्रकारों को सांप सूंघ गया है। कोई भी दीदी के खिलाफ बोलने को राजी नहीं है।
जन की बात के एडिटर इन चीफ प्रदीप भंडारी जी जब बंगाल चुनाव के दौरान प्रदेश में थे। तब उन्होंने इस हिंसा को महसूस किया उनके अनुसार आम जनता भी काफी डरी-सहमी हुई थी और खुलकर बात नहीं कर रही थी। ऐसे में यह सोचना जरूरी है कि आखिर भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ऐसे अलोकतांत्रिक व्यवहार को कहां तक खुली छूट दी जा सकती है।
आज हमें इस मुद्दे पर आवाज उठाने की जरूरत है क्योंकि बंगाल के साथ-साथ लोकतंत्र की सुरक्षा भी अब हमारे हाथों में है। कब तक लोकतांत्रिक देश में दीदी का अलोकतांत्रिक रवैया चलता रहेगा। आज सच में बंगाल को बचाने की जरूरत है।