आज पुरे देश व जहाँ जहाँ हिंदू धर्म को मानने वाले है वहां आज गुरु पूर्णिमा पूर्व की धूम है। गुरु का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है। गुरु के बिना जीवन में हम अधूरे है, जन्म से लेकर मुर्त्यु तक हमारे जीवन में हर पडाव पर हमे किसी न किसी रूप में गुरु की आवश्यकता होती है।
जन्म के बाद माता पिता ही हमारे सबसे पहले और बड़े गुरु है उसके बाद विधालय में अध्यापक व् इसी प्रकार जेसे जेसे हम जीवन में आगे बढ़ते है हमारे जीवन में गुरु की महत्वता और अधिक बढती जाती है।
आखिर क्यों मनाया जाता है गुरुपूर्णिमा का पूर्व क्या है मान्यताएं
गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु की याद में हर साल मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन आमजन अपने अपने गुरुओं को याद करते हैं, व उनकी पूजा-अर्चना भी करते हैं। अगर हम ऐतिहासिक व धार्मिक तौर पर इस चीज को देखें तो गुरु पूर्णिमा का पर्व सनातन हिंदू धर्म गुरुओं को पूर्ण समर्पित है। पूर्व में गुरुकुल के अंदर पढ़ने वाले विद्यार्थी इस दिन अपने गुरुजनों की सेवा व उनकी पूजा करते थे।
गुरु पूर्णिमा की शुरुआत महर्षि वेदव्यास की याद में की जाती है। वेदों के रचनाकार महर्षि वेदव्यास का जन्म इसी दिन हुआ था। तभी से उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा का यह पर्व मनाया जाने लगा। महर्षि वेदव्यास के सम्मान में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। सनातन हिंदू धर्म में गुरु का महत्व ईश्वर से भी ऊपर बतलाया गया है।
क्योंकि जीवन में गुरु के बिना ज्ञान पाना असंभव है और हमें अपने जीवन में किसी न किसी रूप में गुरु की आवश्यकता पड़ती ही रहती है। आपको बता दें कि इस दिन केवल गुरुओं की ही पूजा अर्चना नहीं की जाती है। इस दिन आप अपने बड़ों का यानी माता-पिता भाई-बहन व अन्य बुजुर्गों का भी आशीर्वाद ले सकते हैं। क्योंकि उन्होंने भी आपको आपके जीवन में किसी न किसी मोड़ पर शिक्षा व गुरु का एहसास दिलाया होता है।
क्या है गुरुपूर्णिमा के दिन का महत्व
वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जो की संस्कृत भाषा के सबसे महान ज्ञाता थे, उन्होंने वेद को लिपिबद्ध किया व उनका विभाजन भी किया। साथ ही महर्षि वेदव्यास ने दुनिया के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत को भी लिपिबद्ध किया था। महर्षि वेदव्यास ने अपने जीवन काल में अनेकों ग्रंथ लिखे उन्हें 18 पुराणों का रचयिता भी कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा करने का विशेष महत्व है।
ऐसे करें गुरुजनों को प्रसन्न
गुरु पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त:
गुरु पूर्णिमा की तिथि: 5 जुलाई
गुरु पूर्णिमा प्रारंभ: 4 जुलाई 2020 को सुबह 11 बजकर 33 मिनट से
गुरु पूर्णिमा तिथि सामप्त: 5 जुलाई 2020 को सुबह 10 बजकर 13 मिनट तक
गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं। इसके बाद ”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये” मंत्र का जाप करें। फिर अपने गुरु या उनकी प्रतिमा की कुमकुम, अबीर, गुलाल आदि से पूजा करें।
उन्हें मिठाई, ऋतुफल, सूखे मेवे, पंचामृत का भोग लगाएं। यदि आपके गुरु आपके सामने हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं फिर उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें। अब उन्हें भोजन कराएं। इसके बाद दक्षिणा देकर उनके पैर छूकर उन्हें विदा करें।
इन मंत्रों के माध्यम से भी आप कर सकते हैं गुरुओं की पूजा
1. ॐ गुरुभ्यो नम:।
2. ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
3. ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
4. ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।