आज आरबीआई गवर्नर शशिकांत दास ने फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट को पेश किया।फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट पर आरबीआई गवर्नर ने कहा वित्तीय संस्थाओं को अपने बिजनेस मॉडल का पुनःमूल्यांकन करना चाहिए। और साथ ही कोविड19 के बाद न्यू नॉर्मल को अपनाना चाहिए। इसके साथ ही फाइनेंशियल सिस्टम में कोंटेजन रिस्क पर सभी स्टेकहोल्डर्स को निगरानी रखनी चाहिए।
इसके साथ ही आरबीआई गवर्नर ने जोर देते हुए कहा कि सभी वित्तीय संस्थाओं को अपनी पूंजी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। इसका मुख्य कारण आने वाले समय में बैंकों के एनपीए बढ़ने की संभावना है।
फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
*फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कहा गया कि बैंकों का ग्रॉस एनपीए मार्च 2020, 8.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2021 तक 12.5 प्रतिशत होने की संभावना है।
*यदि कोरोना की वजह से बैंकिंग सेक्टर पर और अधिक दबाव पड़ता है तो ग्रॉस एनपीए 14.7% तक जाने की संभावना है।
*जबकि कैपिटल एडिक्वेसी अनुपात मार्च 2020, 14.6% से गिरकर मार्च 2021 तक 13.3 होने की संभावना है। जिसके कारण बड़ी मात्रा में बैंकों को पूंजी की जरूरत पड़ सकती है। आपको बता दें जिस बैंक का कैपिटल एडेक्वेसी अनुपात जितना अधिक होता है उसकी रिस्क झेलने की क्षमता भी उतनी अधिक होती है।
*बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज पर ब्याज पिछले कुछ दशकों में सबसे न्यूनतम स्तर पर है। जिसके कारण बाजार में बड़ी मात्रा में लिक्विडिटी देखने को मिलेगी।
* स्ट्रेस टेस्ट के रिजल्ट में यह पता चला कि यदि स्थिति और गंभीर होती है तो फिर पांच बैंक न्यूनतम पूंजी अनुपात की शर्त को पूरा नहीं कर पाएंगे।
फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट क्या होती है?
फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट को वर्ष में दो बार रिजर्व बैंक के द्वारा प्रकाशित किया जाता है। यह रिपोर्ट देश में रेगुलेटरी अथॉरिटी जैसे सेबी, आईआरडीए, पीएफआरडीए, वित्त मंत्रालय और आरबीआई से मिले अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया जाता है। इसमें स्ट्रेस टेस्ट के द्वारा फाइनेंशियल सेक्टर के लचीलापन को भी परखा जाता है। रिजर्व बैंक को इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने से पहले फाइनेंशियल स्टेबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल से अप्रूवल लेना होता है।