रूस मैं कुछ दिन पहले दुनिया को चौकाते हुए और नई उम्मीद की किरण दिखाते हुए वैक्सीन को तैयार कर लेने का दावा ठोका दिया था।
मीडिया में खबर छपी, रशिया के राष्ट्रपति के राष्ट्रप्रेम की तारीफें हुई और कई लाखो कोरोना संक्रमित लोगों ने एक नई उम्मीद की किरण देखी और ये सब सिर्फ एक खबर से हुआ।
जी हां सिर्फ एक खबर और इसके अलावा और कुछ नहीं। अलग-अलग देशों द्वारा लगातार वैक्सिंग खोजने की खबर जैसा ही रूस का भी यह वैक्सिंग खोजने की बात झूठी निकली।
दावे को नकारा सबूतों ने
11 अगस्त को रूस द्वारा उनकी बनाई गई कोरोना की वैक्सीन ‘Sputnik V’ की रजिस्ट्रेशन के दौरान पेश किए गए दस्तावेजों से उनके वैक्सीन पर उठने लगे है कई सवाल।
डेली मेल में छपी खबरों की मानें तो रसिया ने जिन वॉलिंटियर पर वैक्सिंग का प्रयोग किया था। उन वॉलिंटियर में बुखार, शरीर में दर्द, डायरिया, गल्ले में दर्द और सूजन के लक्षण देखने को मिले।
डेली मेल ने आगे लिखते हुए बताया कि 42 दिनों में इस वैक्सिंग का परीक्षण सिर्फ 38 वॉलिंटियर्स पर ही किया गया था।
WHO ने यह भी बताया की दुनिया का हर वैक्सीन निर्माता हमसे अपनी हर प्रक्रिया को साझा कर रहा है, वही रूस ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
रूस ने दावा किया था कि इस वैक्सीन से एंटीबॉडी तैयार होगा जो कोरोना संक्रमन से बचाव करने में कारगर साबित होगा।
वैक्सिंग के रजिस्ट्रेशन के दौरान दस्तावेजों और तथ्यों को जांच करने के बाद देखा गया और WHO ने कहा है कि इस वैक्सिंग पर भरोसा नहीं किया जा सकता हैं और साथ ही उन्होंने कहा कि “रसिया ने दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया है वैक्सीन बनाने में”।
सरकार का दावा है कि इससे कोई दुश परिणाम (Side Effects) नहीं होगें, वही वैक्सिंग बनाने वाली कंपनी कह रही है कि बुखार आ सकता है।
दस्तावेजों में कहीं भी तीसरे क्लिनिकल ट्रायल का जिक्र नहीं है जिसके बिना किसी भी वैक्सीन को तैयार नहीं किया जा सकता है। किसी भी वैक्सीन निर्माण में पांच मुख्य प्रक्रिया से गुजर ना होता है। खोज करने से लेकर प्रीक्लिनिकल ट्रायल से होते हुए मास क्लिनिकल ट्रायल तक समीक्षा करनी पड़ती है जिसने समय और हजारों वॉलिंटियर की आवश्यकता होती है।
इन सब से हटकर रूस ने सिर्फ 38 लोगों पर इस वैक्सिंग का परीक्षण करते हुए और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा अपनी बेटी को सबसे पहला टीका लगाने की बात के साथ वैक्सीन की घोषणा कर दि गई।