दिल्ली दंगों पर एक किताब आने वाली थी लेकिन उसके प्रीलॉन्च से ठीक पहले किताब के प्रकाशक ब्लूम्सबरी इंडिया ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। दिल्ली में 23 फरवरी से 27 फरवरी के बीच में दंगे हुए थे जिसमें कई लोगों की जान भी चली गई थी। इस पर मोनिका अरोड़ा जो कि एक सोशल एक्टिविस्ट और लॉयर हैं इन्होंने इन दंगों पर एक किताब लिखी और इस दौरान कई घटनाक्रम का भी जिक्र किया। लेकिन किताब के प्रकाशक जो कि ब्लूम्सबरी इंडिया है उसने इसके प्रीलॉन्च से पहले ही अपने हाथ खींच लिए। आपको बता दें कि घटनाक्रम के बाद देश में अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर एक और जंग छिड़ गई है। सोशल मीडिया पर लोग इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बता रहे हैं। वैसे भी ब्लूमसबरी का यह फैसला लोगों को चकित करता है, क्योंकि ब्लूम्सबरी शाहीन बाग पर लिखी गई “शाहीन बाग फ्रॉम आ प्रोटेस्ट टू आ मूवमेंट” किताब को छाप देता है लेकिन दिल्ली दंगों पर लिखी गई मोनिका अरोड़ा की किताब से हाथ खीच लेता है। जबकि शाहीन बाग पर लिखी गई किताब पूरी तरह से फिक्शनल है और प्रोपेगेंडा के आधार पर लिखी गई है।
The authors take us on this glorious journey of the making of #ShaheenBagh & how it became a metaphor for resistance, spawning a hundred Shaheen Baghs across the country to restore the sanctity of the Constitution, the national flag & the national anthem.https://t.co/iu0JDxxJjh pic.twitter.com/zAJ7NyVgw7
— Bloomsbury India (@BloomsburyIndia) August 21, 2020
राना अयूब की प्रोपोगंडा किताब
सबसे बड़ी बात राना अय्यूब जो कि फिक्शन पर आधारित एक किताब लिखती हैं, हालांकि वह दावा करती है कि उन्होंने इसके लिए नरेंद्र मोदी, 2002 दंगों के समय गुजरात के मुख्य सचिव गृह ,सीआईडी के अधिकारी और तमाम लोगों का स्टिंग करती है और इस आधार पर वह किताब लिखती है “गुजरात फाइलस” लेकिन उनका यह भी कहना होता है कि तहलका ने स्टिंग को रिलीज करने से मना कर दिया क्योंकि राजनीतिक दबाव था। लेकिन उनके इस दावे को सुप्रीम कोर्ट नकार देता है और कहता है कि साक्ष्य लायक कुछ भी नहीं है। राणा अय्यूब के पुस्तक के सिद्धांतों को सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य के तौर पर स्वीकारने से साफ मना कर दिया। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है, “राणा अय्यूब की पुस्तक का यहां कोई काम नहीं है। यह केवल अनुमानों, अटकलों और कल्पना पर आधारित है, जिसका साक्ष्य के तौर पर कोई मूल्य नहीं है। राणा अय्यूब ने जो तर्क अपनी पुस्तक में दिए हैं ये उनके अपने विचार हैं और किसी के विचार को साक्ष्य के दायरे में नहीं आते। इससे यह साफ जाहिर होता है की कोई व्यक्ति जो कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलेआम बोलता है, कई बार भ्रामक तस्वीरें भी पेश करता है, कश्मीर के बारे में कई बार भ्रामक पोस्ट भी करता है। लेकिन उसकी किताब रिलीज हो जाती है क्योंकि देश में अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन दिल्ली दंगों पर लिखी हुई किताब से प्रकाशक ही अपने हाथ खींच लेता है।
प्रोपेगेंडा के आधार पर लिखी गई राना अय्यूब की किताब आ जाती है। बल्कि सुप्रीम कोर्ट राना अयूब के किताब के साक्ष्य को नकार देता है, लेकिन दिल्ली दंगों के सच को रोकने की पूरी कोशिश की जा रही है।
ब्लूम्सबरी ने क्या कहा
किताब की प्रकाशक ब्लूम्सबरी इंडिया ने एक प्रेस रिलीज जारी किया और कहा कि “फरवरी में दिल्ली में हुए दंगे जिस पर “डेल्ही रायट्स :द अनटोल्ड स्टोरी” नामक प्रकाशित एक किताब आने वाली थी, लेकिन लेखकों ने प्रीलॉन्च के समय ऐसे लोगों को बुलाया जिन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही पब्लिशर कहता है कि बिना किसी जानकारी के किताब के लॉन्च के लिए एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया और इस आयोजन में भड़काऊ भाषण देने का आरोप झेल रहे कपिल मिश्रा को मुख्य अतिथि बनाया गया। साथ ही ब्लूमबरी इंडिया ने कहा कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्के हिमायती हैं लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को लेकर भी उतने ही सचेत हैं। ब्लूम्सबरी इंडिया का सीधा निशाना कपिल मिश्रा पर था हालांकि उन्होंने नाम नहीं लिया।
मोनिका अरोड़ा ने क्या कहा
वहीं पर इस घटनाक्रम पर किताब की लेखिका मोनिका अरोड़ा से जब प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि “यदि एक प्रकाशक मना करता है तो 10 प्रकाशक और आ जाएंगे। बोलने की आजादी के मसीहा इस किताब से डरे हुए। इसके साथ ही मोनिका अरोड़ा ने कहा कि दिल्ली दंगों की जांच एनआईए द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि यह दंगे पूरी तरह से सुनियोजित थे। इसके साथ ही लॉन्चिंग कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कपिल मिश्रा ने कहा कि दुनिया की कोई भी शक्ति इस किताब को आने से नहीं रोक सकती और लोग इसे पढ़ना चाहते हैं। बोलने की स्वतंत्रता के ठेकेदार डरते हैं। कपिल मिश्रा ने कहा कि पुस्तक किया उजागर करेगी कि दंगों के लिए प्रशिक्षण कैसे दिया गया था और दुष्प्रचार तंत्र इसमें शामिल था।
यह पुस्तक को आठ अध्यायों और पांच अनुलग्नकों में विभाजित किया गया है। लेखकों का दावा है कि यह किताब दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जमीनी अनुसंधान पर आधारित हैं। पुस्तक के अध्याय भारत में शहरी नक्सवाल और जिहादी थ्योरी, सीएए, शाहीन बाग और अन्य के बारे में हैं।