विपिन श्रीवास्तव, जन की बात
कोविड को भारत मे दाखिल हुए अब दो साल से ज्यादा हो गए हैं, और इन दो सालों में हज़ारों लोगों की जाने इस महामारी ने ली हैं, साथ ही साथ देश के लाखों अन्य लोग भी किसी न किसी तरह से इस महामारी से प्रभावित हुए हैं । स्कूल बंद हुए भी लगभग डेढ़ साल हो चुके हैं, डेढ़ सालों से बच्चे अपने घरों में बैठे हैं और ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं । लेकिन अब अलग अलग राज्य की सरकारों ने अपने अपने राज्य में बच्चों के लिए स्कूलों के दरवाजे खोलना शुरू कर दिए हैं । यूपी, गुजरात, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, के साथ साथ अब 1 सितंबर से दिल्ली सरकार ने भी स्कूल खोलने के आदेश दे दिए हैं । मगर सवाल यह उठता है कि एक तरफ स्वस्थ मंत्रालय ICMR कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी भी दे रहे हैं, और इसका असर सबसे ज्यादा बच्चों पर होने की आशंकाएं भी जताई जा रही हैं और दूसरी तरफ स्कूल भी खुल रहे हैं ।
अब जबकि कोरोना की वैक्सीन को अभी तक बच्चों के लिए नही शुरू किया गया है, तो ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि ऐसे में बच्चों को कोविड संक्रमण से बचाने के लिए राज्य सरकारों की तरफ से क्या उपाय किये जा रहे हैं ?वहीं दूसरी तरफ चिंता का विषय यह भी है कि डेढ़ साल से घर मे बैठकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे बच्चों के दिमागी विकास के लिए अब उनका घर से बाहर निकल कर स्कूल जाना भी जरूरी हो गया है, क्योंकि यह उनके भविष्य का सवाल है ।
इसी मुद्दे पर आज इंडिया न्यूज पर प्रदीप भंडारी ने जनता का मुकदमा में बच्चों के भविष्य के लिए मुक़दमा लड़ा और दलील दी कि बच्चों के भविष्य और उनके दिमागी विकास के लिए स्कूल खुलने जरूरी हैं, लेकिन सरकार किस तरह से प्रोटोकॉल को स्कूलों से फॉलो करवाती है और किस तरह से सुरक्षा का खयाल रखा जाता है यह सबसे जरूरी है। क्योंकि अभी तक दिल्ली में टीचरों को भी पूरी तरह से शत प्रतिशत वैक्सिनेट नही किया जा सका है ।
इसी मुद्दे पर आज जनता का मुकदमा से पहले हमने Koo पर एक पोल रखा जिसमे यह पूछा गया जिसमे यह पूछा गया:
‘राज्यों ने स्कूल खोलना शुरू कर दिया है, क्या आप सितंबर अक्टूबर में तीसरी लहार की चेतावनी के बीच स्कूलों को फिर से खोलने के पक्ष में हैं ?जिसके जवाब में लोगों की काफी मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली ।
53% लोगों ने कहा कि ‘नही’ वो स्कूल खुलने के पक्ष में नही हैं, जबकि 47% लोगों ने कहा कि ‘हाँ’ हम स्कूल खोले जाने के पक्ष में हैं ।
अब जनता की इस प्रतिक्रिया से यह तो पता चल ही गया है कि लोगों के अंदर अभी भी कोरोना से बच्चों की सुरक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है । लेकिम फिर भी काफी लोग इस बात से भी चिंतित हैं कि डेढ़ साल से बच्चे घर में बैठे हैं और कहीं आगे भी बैठे रहे तो उनकी पढ़ने और लिखने की क्षमताओं में कमी न आने लगे, क्योंकि ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई में जमीन आसमान का फर्क है ।
फिलहाल हम यही कह सकते हैं कि बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए स्कूलों को खोला जाना चाहिए, मगर कोविड सुरक्षा के सभी इंतजामों के साथ ।
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