रिषभ सिंह, जन की बात
जन की बात के संस्थापक प्रदीप भंडारी ने पंजाब चुनाव के पहले बड़ा सर्वे प्रस्तुत किया। आपको बता दें यह सर्वे 27 अगस्त से 3 सितंबर के बीच किया गया है। इस सर्वे के लिए पंजाब के अलग अलग हिस्सों से 10,000 लोगों से राय ली गई है।
एक सर्वे के अनुसार जब किसान आंदोलन में बैठ किसानों से पूछा गया की क्या उन्होंने किसान बिलो को पढ़ा है या नही,तब यह पता चला कि केवल 33% किसानों ने ही इन बिलों को पढ़ा है। यह सिर्फ किसानों की गलती नहीं है बल्कि यह इस सरकार की नाकामी है कि वो इन किसानों को किसान बिलो का असल वक्तव्य समझा नहीं सके।
मोदी सरकार पंजाब के किसानों की नाराजगी का अंदाजा क्यों नहीं लगा पा रही है, इसके पीछे कि बड़ी वजह बीजेपी का पंजाब में अपने दम पर मजबूत न होना ही है। ऐसे में न तो पार्टी पंजाब के किसानों को साधने में कामयाब हो रही है और न ही किसानो के आंदोलन की जड़ को पकड़ सकी।
मुख्यत: बीजेपी पंजाब की सियासत में शिरोमणि अकाली दल के सहारे करीब ढाई दशक से अपनी राजनीति कि रोटी सेकती आ रही है। पंजाब में कुल 117 विधानसभा सीटें हैं जिसमें से बीजेपी महज 23 सीटों पर ही चुनाव लड़ती आ रही है। इससे न तो पार्टी का संगठन खड़ा है और न ही कोई जनाधार है। आजतक पंजाब में अकाली दल की राजनीती से ही बीजेपी की किस्मत का फैसला होता आया है।सबसे अनोखा उदहारण यह है कि लोकसभा और विधानसभा में प्रचण्ड मोदी लहर होने के बावजुद भी बीजेपी कुछ खास प्रभाव पंजाब में नहीं छोड़ सकी।
बीजेपी का राजनीतिक आधार सिर्फ शहरी मतदाताओं के बीच अकाली दल के साथ रहने के चलते है। यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में पार्टी की पकड़ कमजोर है और हम यह भी कह सकते है कि न के बराबर है। किसान आंदोलन पूरी तरह से ग्रामीण इलाके का है। किसानों की नब्ज को बीजेपी के स्थानीय नेता समझ नहीं पा रहे हैं। कुल मिला के हम यह कह सकते है कि बीजेपी का स्थानिय नेत्रित्व शून्य है। ग्रामीण इलाकों के किसानो कि भावना और उनके तकलीफ को समझ सके और किसान बिलों के असल फायदे समझा सकें, ऐसा करने में बीजेपी और सफल रही है।
इसके पहले जन की बात के संस्थापक प्रदीप भंडारी ने 19 चुनावों का सटीक आकलन किया है।