विपिन श्रीवास्तव, जन की बात
राजधानी दिल्ली से 175 किलोमीटर दूर अलीगढ़ में आज भव्य समारोह चल रहा है, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां पर मौजूद हैं, और उन्होंने खुद वहां पर एक विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी है, और यह विश्वविद्यालय राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर है, और यही प्रधानमंत्री की राजा महेंद्र प्रताप सिंह को श्रद्धान्जलि भी है ।कौन है राजा महेंद्र प्रताप सिंह, और क्यों आज प्रधानमंत्री उनके नाम पर एक विध्वविद्यालय बना रहे हैं ?
चलिए हम बताते हैं…
राजा महेंद्र प्रताप सिंह वो शख्सियत थे, जिन्होंने काबुल में बैठे बैठे ही भारत की पहली अंतरिम सरकार का गठन किया था, और उस सरकार के मुखिया खुद राजा महेंद्र प्रताप सिंह थे ।आज के वक़्त में उत्तर प्रदेश के जिस स्थान पर हाथरस जिला है उसी स्थान पर राजा महेंद्र प्रताप सिंह की रियासत हुआ करती थी । और जिस जमीन पर अलीगढ़ विश्वविद्यालय आज अपना झंडा बुलंद करता है वो जमीन राजा महेंद्र प्रताप सिंह के खानदान की दी हुई है ।राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय बनाने की मांग लंबे अरसे से चल रही थी, जिसपर आज प्रधानमंत्री जी ने मोहर लगा दी।
राजनीति के महारथी थे राजा महेंद्र प्रताप
1986 में अलीगढ़ की मुरसान रियासत में जन्मे महेंद्र प्रताप को तीन साल की उम्र में ही हाथरस के राजा हरनारायण ने गोद ले लिया ।उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई लेकिन बाद में वो मोहोम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजिएट स्कूल में पढ़ने गए और यही स्कूल बाद में अलीगढ़ विश्वविद्यालय बना ।महेंद्र प्रताप ने स्कूल में अपने दाखिले के दस साल बाद यानी 1905 में कालेज छोड़ दिया, और वह अपना स्नातक पूरा नही कर पाए । हालांकि उनकी छात्र जीवन से ही राजनीति में गहरी रुचि थी।
स्वदेश आंदोलन में लिया हिस्सा
अपने ससुर के नापसंद होने के बावजूद महेंद्र प्रताप ने 1906 में कोलकाता जाकर कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लिया । अधिवेशन में कई दिग्गज नेताओं से मुलाकात के बाद महेंद्र प्रताप के अंदर देशभक्ति की आग तेज़ हो गयी । बतौर शाही वारिस उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वो छोटे उद्योगों और स्वदेश माल को प्रोत्साहित करेंगे ।महेंद्र प्रताप पर दादा भाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्रपाल की बातों का गहरा प्रभाव था ।अपने राज्य में विदेशी कपड़ों और सामानों को जलाने के आंदोलन की शुरुआत महेंद्र प्रताप ने ही कि थी ।
काबुल से बनाई देश की पहली अंतरिम सरकार
प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था और इधर महेंद्र प्रताप के दिल में मातृभूमि को स्वतंत्र कराने की ज्वाला धधक रही थी । 1914 में वो तीसरी बार देश से बाहर गए, इस उम्मीद में की वो विदेशियों की मदद से देश को आजाद कराने में सफल रहेंगे । यूरोप के तमाम देशों में घूमकर अपनी ताकत बढ़ाने के बाद महेंद्र प्रताप काबुल गए।1 दिसंबर 1915 को महेंद्र प्रताप का 28वां जन्मदिन था और उसी दिन उन्होंने काबुल से ही भारत की पहली अंतरिम सरकार का गठन किया । उन्होंने इस सरकार में खुद को राष्ट्रपति बनाया और मौलवी बरकतुल्लाह को प्रधानमंत्री बनाया ।
अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद छेड दिया गया और कुछ साल यूँ ही संघर्ष में गुज़र गए।दिमिर लेनिन के साथ राजा महेंद्र प्रताप सिंह की अच्छी दोस्ती थी, लेनिन ने राजा को रूस बुलाया, और यहीं से अंग्रेजों की नजर में राजा महेंद्र प्रताप सबसे बड़ा खतरा बन गए । अंग्रेजों ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह के सर पर इनाम रख दिया और उनकी सारी संपत्ति जब्त कर उनको भगोड़ा घोषित कर दिया । और राजा को 1925 में जापान भागना पड़ा
1957 में बाजपेयी को हरा संसद पहुंचे महेंद्र प्रताप
जापान पहुंचकर भी राजा कोशिश करते रहे कि विश्वयुद्ध का फायदा उठाकर किसी तरह से भारत को आज़ाद कराया जाय । 1932 में राजा महेंद्र प्रताप को नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया ।
32 साल बाद 1946 में राजा महेंद्र प्रताप वापस अपने मुल्क भारत पहुंचे और वर्धा में गांधी जी से मिले, तब तक भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो चुकी थी और महेंद्र प्रताप देश की सत्ता देश की जनता के हांथों में दिलाने की मुहिम शुरू कर चुके थे ।
हालांकि जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने उन्हें ज्यादा महत्व नही दिया और कांग्रेस के भीतर भी राजा साहब को ज्यादा तवज्जो नही दी गयी । 1957 में राजा साहब ने मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ जीत हासिल की। राजा महेंद्र प्रताप सिंह का निधन 1979 में हुआ ।
इतने सालों से अपनी ही रियासत में गुमनाम रहने के बाद आज राजा महेंद्र प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सच्ची श्रद्धांजलि दी, और वर्षों से जनता की मांगों को पूरा करते हुए उनके नाम पर अलीगढ़ में एक विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी । प्रधानमंत्री ने कहा:
”भारत की स्वतंत्रता के लिए ही नहीं लड़े बल्कि देश की शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक बनाने के लिए वृंदावन में आधुनिक टेक्निकल कॉलेज, अपने संसाधनों से पैतृक संपत्ति दान देकर बनवाया। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के लिए भी जमीन राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ही दी। 21वीं सदी का भारत शिक्षा और कौशल के नए दौर की तरफ चला है तब मां भारती के ऐसे अमर सपूत के नाम पर यूनिवर्सिटी का निर्माण सच्ची श्रद्धान्जलि है।’