चीन के सामने अलग मुसीबत आन पड़ी है। सन 1980 में ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ लाकर वह अपनी जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सफल रहा, लेकिन यह मुल्क अब दूसरी समस्याओं से जूझ रहा है। एक सर्वे में बताया गया था कि अगले पांच साल में चीन की एक चौथाई आबादी की उम्र 65 साल से अधिक होगी, मतलब काम करने वालों की कमी और गरीबी की समस्या। बीबीसी के अनुसार, ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ लाने के पांच साल बाद अब चीन ने ‘थ्री चाइल्ड पॉलिसी’ लागू की है। लेकिन वहां के लोगों की चिंता यह है कि महंगाई के इस दौर में वे बड़ा परिवार कैसे चलाएंगे? वहां की युवा पीढ़ी तो अब संतान पैदा करने से ही हिचकने लगी है। इसलिए जन्म-दर रोककर जनसंख्या नियंत्रण चाहने वाले मुल्कों के लिए चीन की खबर और हालात ध्यान देने योग्य हैं, क्योंकि आने वाले वक्त में यह समस्या ज्यादातर मुल्कों की हो सकती है। संयोग से भारत भी उसी दिशा में काम कर रहा है।
बड़ी आबादी को अभिशाप की तरह पेश करने वाले लोग भूल जाते हैं कि हमारे पड़ोसी देश चीन ने इसी की बदौलत अमेरिका से लोहा लिया और सस्ते श्रम के कारण दुनिया की फैक्टरी बन बैठा। आज आलम यह है कि लगभग सभी देश चीनी उत्पादों पर निर्भर हैं, बल्कि उपभोक्ताओं को भी सस्ती चीजें उपलब्ध हुईं और उनका जीवन-स्तर ऊपर उठा है। इसलिए हमेशा जनसंख्या को नकारात्मक रूप में पेश करने की जरूरत नहीं है। यह सही है कि संसाधन सीमित हैं और बढ़ती आबादी से उन पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे पर्यावरण में असंतुलन पैदा हुआ है। लेकिन क्या इसके लिए कोई एक धर्म या समुदाय जिम्मेदार है? नहीं, यह सामूहिक विफलता है और इसको धर्म के चश्मे से देखना सरासर राजनीति है। बेहतर होगा कि भारत सरकार सबको शिक्षित करे, लोग खुद इसके गुण-दोष से अवगत हो जाएंगे।