कश्मीर घाटी में एक बार फिर से पंडितों को निशाना बनाया जा रहा हैं, कई सालों से उन्हें घाटी में बसाने के प्रयास चल रहे थे, इसमे कुछ कामयाबी भी मिलने लगी थी, मगर अब इसकी उम्मीद धुंधली पड़ने लगी हैं. बडगाम के चडूरा तहसील कार्यालय में घुसकर जिस तरह इस्लामिक दहशतगर्दों ने एक कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या कर दी, उससे स्वाभाविक ही वहां के लोगों में रोष बढ़ा हैं. इससे एक बार फिर पंडितो के घाटी छोड़ने को लेकर चिंता पैदा हो गईं हैं. ताजा घटना की जिम्मेदारी जिस कश्मीर टाइगर्स नामक संगठन ने ली हैं, वह बिलकुल नया जान पडता हैं यानि अब दहशतगर्दों के नए संगठन बन रहे हैं या पुराने संगठन नए नामों से सक्रिय हो गए हैं, इस घटना से यह भी जाहिर हैं कि इस संगठन का निशाना खासतौर से कश्मीरी पंडित हैं.
हालांकि लम्बे समय से वहां सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ी हैं, खुफिया एजेंसियां सक्रिय रहती हैं और सेना के तलाशी अभियान निरंतर चलते हैं, इसके बावजूद इस्लामिक दहशतगर्दो पर नकेल नहीं कसी जा रही हैं, वे नए नामों से सिर उठाने लगे हैं,तो इससे यही रेखांकित होता हैं कि इस दिशा में नए ढंग रणनीति बनाने की जरुरत हैं. बडगाम की ताजा घटना अकेली नहीं है. पिछले साल इसी तरह दवा विक्रेता कश्मीरी पंडित की गोली मारकर हत्या कर दी थी, उसका परिवार शुरू से घाटी में रह रहा था. पिछले महीने भी एक कश्मीरी पंडित की इसी तरह हत्या कर दी गयी. पिछले सात सालों में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं. इससे पहले कश्मीरी पंडितों की हत्या का सिलसिला रुक गया था और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय विस्थापित कश्मीरी पंडितों को दोबारा घाटी में लौटने और बसाने का अभियान चला था. घाटी के कुछ मुसलमान भी चाहते हैं कि वो लौटकर अभी जगह-जमीन पर फिर से कब्ज़ा कर ले. मगर कुछ सालों से, ख़ासकर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद जिस तरह की कटुता वहां पैदा हुई हैं, उसकी प्रतिक्रिया में भी कश्मीरी पंडितों की हत्या हो रही हैं.
पिछले दिनों घाटी से पंडितों के पलायन और नरसंहार को लेकर आई दा कश्मीर फाइल्स नामक फ़िल्म की चर्चा पुरे देश में हुई. उसे लेकर एक बार फिर कश्मीरी पंडितो के हक़ की मांग कुछ तीखे स्वर में उठने लगी. ऐसे में स्वाभाविक रूप से घाटी के अलगाववादी संगठनों की भी कड़ी निंदा हुई. इसकी प्रतिक्रिया भी इन नई घटनाओ के रूप में देखी जा सकती हैं. कश्मीरी पंडितों को घाटी में फिर से बसाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरियों में जगह सुरक्षित रखने का प्रावधान किया गया. इस तरह कई विस्थापित पंडितों को वहां नौकरियां मिली और वे अपने पैतृक घरों को सुधार कर रहने लगे. बडगाम में जिस युवक की हत्या कर दी गई, वह भी इसी योजना के तहत वहां रहने गया था.
अब इस घटना से वहां इस तरह वापस गए लोगों में दहशत पैदा होना स्वाभाविक हैं. इसलिए सरकार की जबाबदेही को लेकर सवाल उठने लगे हैं केवल नौकरी देने और विस्थापितों को कश्मीर में वापस लौटाने की कोशिश से इस दिशा में कामयाबी नहीं मिलेगी. उनकी सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम करने होंगे. जब तक वे सुरक्षित महसूस नहीं करेगें, भला कब तक वहां टिके रह सकेगे. हैरानी की बात हैं कि तहसीलदार के कार्यालय में घुस कर कैसे वहां काम कर रहे युवक को गोली मार कर इस्लामिक आतंकी आसानी से निकल गए थे.