आगामी 11 जुलाई को विश्व जनसँख्या दिवस मनाया जाएगा,दुनियाभर में बढती आबादी पर चिंता व्यक्त की जाएगी, बढती आबादी भारत के लिए गहन चिंता का विषय बन चूका हैं, इसपर विचार और रोक के प्रावधान तत्काल करने होंगे.हमारे देश में ‘हम दो, हमारे दो’ का कॉन्सेप्ट कई दशकों से चला आ रहा है.लोगों को जागरुक किया जाता रहा है ,लेकिन अब देश मे टू चाईल्ड पॉलिसी की नही वन चाईल्ड पॉलिसी की आवश्यकता है .थोड़ी सख्ती भी बरतने की आवश्यकता है . आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. बीते कुछ दशकों में भारत में साक्षरता दर बढ़ने के साथ प्रजनन दर में कमी दर्ज की गई है. भारत में जैसे-जैसे साक्षरता बढ़ रही है, बड़ी संख्या में लोग बच्चे पैदा करने से पहले सभी स्थितियों का आंकलन कर ‘फैमिली प्लानिंग’ अपनाते हैं. जिसका सीधा असर प्रजनन दर पर पड़ता है. साल 2000 में प्रजनन दर 3.2 फीसदी था, जो 2016 में 2.4 फीसदी पहुंच गया था. भारत में जनसंख्या में वृद्धि की दर 1990 में 2.07 फीसदी थी, जो 2019 में 1.0 फीसदी पर आ चुकी है.
सरकार एक बच्चा होने पर छह हजार रूपये दूसरा बच्चा होने पर भी छह हजार रूपये की सहायता राशि दी जाती है अब ऐसी नीतियो से कैसे परिवार नियोजन अभियान सफल हो पायेगा .देश मे बढती आबादी के लिये लोगो की धारणा बन चुकी है कि ज्यादा बच्चे मुसलिम पैदा करते है अगर आंकडो की तरफ देखा जाये तो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार जनसंख्या प्रति महिला 2.4 के करीब पहुंच चुकी है. हिंदुओं में ये संख्या 2.1 है और मुस्लिम समुदाय में 2.6 है. अगर 1992-93 के आंकड़ों के देखें तो पता चलता है कि तब प्रति महिला 3.8 बच्चों का औसत था. यानी करीब 30 सालों में ये संख्या करीब 1.4 कम हुई है.हां ये जरूर है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों में बच्चे पैदा करने की संख्या का अंतर घटा है.अर्थात दोनों ही समुदायों ने परिवार नियोजन पर ध्यान दिया है और जनसंख्या नियंत्रण करने में अपना योगदान दिया है. 1992-93 में ये अंतर सबसे अधिक 33.6 फीसदी था, जो करीब 30 सालों में घटकर 23.8 फीसदी हो गया है.
काफी समय से भारत में चीन की तरह जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनाने की मांग उठायी जाती रही है.जनसंख्या मे हुये असमान बदलाव जिस कारण चीन में बुजुर्गों की आबादी बढ़ने और वर्कफोर्स घटने के डर से चीन ने 2016 में ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ को बदलते हुए ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ कर दिया और इसी साल इसे ‘थ्री चाइल्ड पॉलिसी’ में बदल दिया गया है. 1979 में चीन की जनसंख्या लगभग 97 करोड़ थी जो अब तक बढ़कर लगभग 140 करोड़ हो चुकी है.आप सभी सोच सकते है कि अगर चीन ने 1979 में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू नहीं की होती तो आज जनसंख्या लगभग 180 करोड पहुंच चुकी होती.
चीनी सरकार की वन चाइल्ड पॉलिसी से चीन ने करीब 40 करोड़ बच्चों को पैदा होने से रोका, जिसने जनसंख्या नियंत्रण में मदद की. चीन मे वन चाइल्ड पॉलिसी लागू करने के बाद फर्टिलिटी रेट तेजी से गिरा. चीन सरकार ने उससे पहले से ही लोगो पर सख्ती करना शुरू कर दिया था. जनसंख्या के हिसाब से चीन और भारत की आबादी मे ज्यादा अंतर नही है ये अंतर लगभग 5-7 करोड का है . मगर चीन का क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल से तीन गुणा ज्यादा है . जितनी जगह मे चीन का एक व्यक्ति रहता है उतनी ही जगह मे भारत के तीन व्यक्तिओं को एडजस्ट करना पडता हैं. भारत की आबादी भले ही चीन से थोडी कम हो मगर इनका घनत्व बहुत अधिक है जिस पर शीघ्र जनसंख्या नियंत्रण करना आवश्यक है .भारत मे वन चाईल्ड पॉलिसी के लोगो को नुकसान और फायदे जनता को बताने साथ ही प्रोत्साहन के लिये बढावा देने की आवश्यकता है .ताकि लोगो मे इसके प्रति जागरूकता बढे और अपना फायदा दिखे.
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की चर्चा के बाद इसको धर्म और राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है.ये विडंबना है भारत में टू चाइल्ड पॉलिसी को अक्सर धर्म के चश्मे से देखा जाता है.लगभग हर धर्म के लोगों ने ही टू चाइल्ड पॉलिसी का विरोध किया है.जिस स्पीड से जनसंख्या मे वृद्धि हो रही है ये देश के लिए अच्छा नहीं होगा. हमारे देश मे जमीन, क्षेत्रफल,संसाधन सीमित है. तेजी से बढती जनसंख्या का बोझ ज्यादा बढ़ा तो फिर देश की तरक्की के रास्ते में रुकावट आयेगी.
हम जिस स्पीड से जनसंख्या के मामले में बढ़ रहे हैं,तुलनात्मक तौर पर उस स्पीड से हमारी आर्थिक प्रगति नहीं हो रही है और ये गरीबी,अशिक्षा,कुपोषण,बेरोजगारी, प्रति व्यक्ति कम आय जैसी समस्याओं की एक बड़ी वजह है. अगर हम दूसरे विकसित देशों से तुलना करते है तो ये पता चलता है ‘वो देश इसलिए विकसित हैं क्योंकि उनके पास संसाधनो की कोई कमी नही हैं, आर्थिक संपन्नता है और इसकी तुलना में जनसंख्या कम है.दूसरी तरफ भारत में जनसंख्या एक विकराल समस्या बनती जा रही है.राजनैतिक दलो ने अपनी सियासी महत्वाकांक्षाओं के कारण इस विषय को संवेदनशील बना दिया है.इस विषय पर कुछ भी बोलना राजनीतिक बंवडर खडा कर देता है. जब कभी भी इस विषय पर गंभीर चिंतन और विचार विमर्श हुआ है तभी वोट बैंक की पॉलिटिक्स के कारण राजनेताओं ने इस गंभीर विषय को राजनीतिक मुद्दा बना दिया हैं.
विपक्ष को चाहिए कि वो इस मुद्दे को सिर्फ सियासी चश्मे से न देखे और विपक्ष में होने से उनका कार्य सिर्फ विरोध न करना नही है.वहीं सबसे बड़ी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की भी है, जिसे इस मामले सामाजिक एजेंडे के तौर पर लेना होगा.इसके लिए देश की सभी प्रमुख पार्टियों से विचार- विमर्श कर एक सटीक रास्ता निकालना होगा.तभी हम भविष्य की बड़ी चुनौती से निपट पाएंगे और आने वाली पीढ़ी को एक सुविधा सम्पन्न और विकसित राष्ट्र दे सकेंगे.