बीजेपी की ओर से नए संसदीय बोर्ड का एलान किया गया है. चौंकाने वाली बात यह है कि बोर्ड में वरिष्ठ नेता व मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को जगह नहीं मिली है. वहीं बीएस येदियुरप्पा व सर्बानंद सोनोवाल जैसे नेताओं को संसदीय बोर्ड में एंट्री मिली है. शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को केंद्रीय चुनाव समिति से भी बाहर कर दिया गया है.
आखिर क्यों ताकतवर संस्था है संसदीय बोर्ड?
बीजेपी के संसदीय बोर्ड को पार्टी की सबसे ताकतवर संस्था के रूप में जाना जाता है. राष्ट्रीय स्तर या फिर किसी भी राज्य में अगर गठबंधन की बात होती है तो उसमें संसदीय बोर्ड का ही फैसला अंतिम माना जाता है. इसके अलावा राज्यों में विधान परिषद या विधानसभा में लीडर चुनने का काम भी यही बोर्ड करता है.
येदियुरप्पा की हुई एंट्री
बीजेपी चीफ जेपी नड्डा ने पार्टी की संसदीय बोर्ड का गठन किया है. इमसें बी एस येदियुरप्पा, सर्वानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, सुधा यादव, इकबाल सिंह लालपुरा, सत्यनारायण जटिया और बी एल संतोष को शामिल किया गया है. नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया है. येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में लाने के पीछे बीजेपी की बड़ी रणनीति दिख रही है. येदियुरप्पा का कर्नाटक में बड़ा आधार है और पार्टी उनके जरिए 2023 में फिर से सत्ता में आने की कोशिश करेगी.
किन नामों ने सबको चौंकाया?
संसदीय बोर्ड में शामिल किए गए कई नाम ऐसे रहे जिन्होंने सभी को चौंकाया है. इनमें पंजाब के इकबाल लालपुरा, हरियाणा से आने वालीं सुधा यादव, तेलंगाना से आने वाले के लक्ष्मण और मध्य प्रदेश के सत्यनारायण जटिया शामिल हैं. जटिया और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस येदियुरप्पा 75 पार हैं. इसके बाद भी दोनों के संसदीय बोर्ड में शामिल होने पर विश्लेषक आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं.
बीजेपी संसदीय बोर्ड में दिखी विविधता की तस्वीर
जाहिर तौर पर बीजेपी संसदीय बोर्ड पुनर्गठन में विविधता पर जोर दिया गया है. सर्बानंद सोनोवाल पूर्वोत्तर से हैं. एल लक्ष्मण और बीएस येदियुरप्पा दक्षिण से हैं. इकबाल सिंह लालपुरा में एक सिख है और सीमाई राज्य पंजाब से आते हैं. सुधा यादव हरियाणा से आने वाली राजनीतिक नेता हैं. जिनके पति कारगिल में शहीद हो गए थे. उनका संसदीय बोर्ड में शामिल किया जाना महिलाओं और सशस्त्र बलों के परिवारों के लिए सर्वोच्च सम्मान दर्शाता है.