प्रदीप भंडारीकेसाथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यूमें डॉ संजीवसान्याल ने कहा की दुर्भाग्य से क्रांतिकारी आंदोलन के अधिकांश नेता अंग्रेजों द्वारा मारे गए, क्योंकि नेताजी के मामले में हम अब भी नहीं जानते कि वह मारे गए थे या लापता हो गए थे । सबसे जरूरी बात ये की स्वतंत्रता के समय सचिन्द्र सान्याल, रास बिहारी बोस, बिस्मिल, भगत सिंह, थापर उनमें से कोई भी जीवित नहीं था’ और क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी ,लेकिन वे स्वतंत्रता देखने के लिए वहां नहीं थे। आजादी के बाद कांग्रेस की एक शाखा ने सत्ता पर कब्जा किया, जिसका नाम नेहरू शाखा था। कांग्रेस की नेहरू शाखा ने भारत की आज़ादी में अपनी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया यह अक्षम्य है कि कांग्रेस की नेहरू शाखा ने जानबूझकर भारत के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों को हटाया और संपादित किया ।
इतिहासकार आरसी मजूमदार को भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी लिखने का आधिकारिक काम दिया गया था, जब आरसी मजूमदार ने भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता संग्राम की कहानी लिखी, उन्हें बाद में वहां से हटा दिया गया। भारत के क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ी तमाम जगहों को या तो नज़रअंदाज़ कर दिया गया या जानबूझकर दबा दिया गया। कई लोग नहीं जानते कि सेल्युलर जेल केवल संयोग से बच गई थी, वरना इसे गिराने की योजना थी ।
डॉ संजीव सान्याल ने इन्टरव्यू के दौरान कई अहम राज पर से पर्दा उठाया और कहा मौलाना आजाद कॉलेज में एक जेल थी , क्रांतिकारियों को वहां फांसी दी जाती थी। इसे एक स्मारक में बदलने की मांग थी। नेहरू सहमत भी हुए लेकिन बाद में इसे भी दबा दिया गया। अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले आईएनए और नौसेना के नौसैनिकों को सेना में वापस भी नहीं लिया गया, दशकों तक आईएनए सैनिकों को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी मान्यता नहीं मिली केवल 2 साल पहले गणतंत्र दिवस के दौरान राजपथ पर भारतीय सैनिकों का सम्मान किया गया था।
भारत की आजादी की दूसरी कहानी सिर्फ इग्नोर नहीं की गई मिटा दी गई यही सत्य है ।