दुश्मन भले ही समुद्र में छिपा हो, भारतीय नौसेना का ‘वरुणास्त्र’ उसे ढूंढकर उड़ा देगा। ‘वरुणास्त्र’ देश में डिवेलप किए गए हेवीवेट टॉरपीडो का नाम है। और ये जल्द ही भारतीय नवसेना में शामिल हो सकता है, मंगलवार को नेवी ने ‘वरुणास्त्र’ से अंडरवाटर टारगेट को निशाना बनाकर दिखाया। नेवी ने इसका वीडियो भी जारी किया है। नौसेना ने एक बयान में इसे ‘मील का पत्थर’ करार दिया है। ‘वरुणास्त्र’ को नेवी के लिए डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की नेवल साइंस एंड टेक्नोलॉजिकल लैबोरेटरी (NSTL) ने बनाया है। यह अत्याधुनिक एंटी-सबमरीन टॉरपीडो है जिसका नाम समुद्र के देवता ‘वरुण’ के नाम पर रखा गया है। जहाज से लॉन्च किए जा सकने वाले वर्जन को 2016 में नेवी में शामिल किया जा चुका है। डेढ़ टन वजनी और करीब 8 मीटर लंबे ‘वरुणास्त्र’ की रेंज 40 किलोमीटर तक हो सकती है। यह अधिकतम 600 मीटर की गहराई तक 40 नॉट्स (74kmph) की स्पीड में टारगेट को शिकार बना सकता है।
वरुणास्त्र: क्यों खास है भारत का यह टॉरपीडो
मंगलवार को नेवी ने वरुणास्त्र के सबमरीन वेरिएंट का टेस्ट किया है। इसमें इलेक्ट्रिक प्रपल्शन सिस्टम लगा है।
यह टॉरपीडो अपने साथ 250 किलोग्राम का वारहेड ले जा सकता है।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस हेवीवेट टॉरपीडो का करीब 95 प्रतिशत हिस्सा स्वदेशी है।
वरुणास्त्र में कन्फर्मल एरे ट्रांसड्यूसर लगा है जो इसे बाकी टॉरपीडो से ज्यादा चौड़े एंगल में देखने लायक बनाता है।
वरुणास्त्र में एडवांस्ड ऑटोनॉमस गाइडेंस अल्गोरिद्म है। इसे जहाज और पनडुब्बी दोनों से लॉन्च किया जा सकता है।
वरुणास्त्र दुनिया का इकलौता टॉरपीडो है जिसमें GPS आधारित लोकेटिंग एड सिस्टम है।
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भविष्य में बनने वाली भारतीय नौसेना के सभी एंटी-सबमरीन जंगी जहाजों में वरुणास्त्र को फायर करने की क्षमता होगी। अभी इस टॉरपीडो को विशाखापट्नम क्लास, दिल्ली क्लास, कोलकाता क्लास, राजपूत क्लास और कमोरता क्लास के डिस्ट्रॉयर्स में लगाया गया है। इसके अलावा नीलगिरि और तलवार क्लास की फ्रिगेट्स में भी यह टॉरपीडो लगा है।