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भारत के आज़ादी में बिरसा मुंडा का क्या था योगदान, पढ़िए पूरी रिपोर्ट

भारत के आज़ादी के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार और झारखंड में जिस स्वतंत्रता सेनानी को बेहद ही सम्मान से ज़्यादा याद किया जाता है, वो हैं बिरसा मुंडा। बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में लिहतु में हुआ था। सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा के मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बचपन से ही आक्रोश व्याप्त था। यह वर्तमान के झारखंड के खुंती ज़िले के रहने वाले थे। बिरसा मुंडा ने 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों के खिलाफ एक गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत की थी। जिससे गुस्साई ब्रिटिश हुकूमत ने मुंडा को पकड़कर रांची जेल में बंद कर दिया था।

1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ी थी। उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का ऐलान किया। ये महाजन, जिन्हें वे दिकू कहते थे, कर्ज के बदले उनकी जमीन पर कब्जा कर लेते थे। यह मात्र विद्रोह नहीं था, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता और संस्कृति को बचाने के लिए महासंग्राम था।

1858-94 का सरदारी आंदोलन बिरसा मुंडा के उलगुलान का आधार बना, जो भूमिज-मुंडा सरदारों के नेतृत्व में लड़ा गया था। 1894 में सरदारी लड़ाई मजबूत नेतृत्व की कमी के कारण सफल नहीं हुआ, जिसके बाद आदिवासी बिरसा मुंडा के विद्रोह में शामिल हो गए।

बिरसा मुंडा ने मात्र 25 साल की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जो जंग छेड़ी उसने अंग्रेजी सरकार के परखच्चे उड़ा दिए। उसका नारा था कि “अबुआ दिशुम अबुआ राज यानि हमारा देश हमारा राज”। यह अब्राहम लिंकन के नारे के ही समान है कि “जनता की सरकार जनता के द्वारा जनता के लिए”।

बिरसा के अलख से जगह-जगह आदिवासी एकत्रित व संगठित होने लगे और तीर कमान के विद्रोह से देखते ही देखते पूरे झारखंड से अंग्रेजी सरकार के पैर उखड़ने लगे। इस सेना में आदिवासी पुरुषों के साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रही थीं। घबराई अंग्रेजी सरकार ने बिरसा मुंडा को पकड़ने के लिए 500 रुपये का ईनाम रखा। जिसके परिणाम स्वरूप जनवरी 1900 में जब बिरसा उलिहातू के नजदीक डोमबाड़ी पहाड़ी पर बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे, एक आदिवासी की मुखबिरी के कारण अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें चारो तरफ से घेर लिया। अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच लड़ाई हुई। औरतें और बच्चों समेत बहुत से लोग मारे गये।

अन्त में बिरसा 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये और कई दिनों की यातना देने के बाद उन्हें 9 जून सन 1900 में रांची की जेल में ही जहर देकर मार दिया गया।

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Chandan Kumar Pandey
Chandan Kumar Pandeyhttp://jankibaat.com
Chandan Pandey has 5 year+ experience in journalism field. Visit his twitter account @Realchandan21

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