12 जून वो तारीख है, जिसने भारतीय राजनीति की दिशा ही काफी हद तक बदल दी थी। ये वही दिन है जब 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाते हुए जस्टिस सिन्हा ने उन्हें चुनावों में धांधली का दोषी पाया और उनका चुनाव रद्द कर दिया था।
ये याचिका 1971 लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ दायर की गई थी। याचिकाकर्ता थे चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी और समाजवादी नेता राज नारायण। फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश थे जस्टिस जग मोहन लाल सिन्हा।
इस देश में कानून और संविधान ही सर्वोच्च है। शासन व्यवस्था में कोई कितना भी महत्वपूण पद क्यों न हो वह कानून के दायरे में आता है। कानून से ऊपर कोई नहीं है। प्रधानमंत्री भी नहीं। हाईकोर्ट के एक ईमानदार और साहसी जज ने भारत प्रधानमंत्री को दिखाया था कि कानून की हनक क्या होती है। उस जज को प्रलोभन देने की कोशिश की गयी। परोक्ष रूप से धमकी दी गयी। प्रधानमंत्री के कई दूतों ने दबाव बनाया। जासूसी की। लेकिन सत्य के मार्ग पर अटल रहने वाले जज महोदय को कोई डिगा नहीं पाया।
जुझारू समाजवादी राजनारायण जनता के बीच भले चुनाव हार गए लेकिन इस लड़ाई को वे अदालत में खींच ले गए। मार्च 1971 में एक चुनाव याचिका के जरिए राजनारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री के पद पर रहते सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए इंदिरा के चुनाव की वैधता को चुनौती दी थी।