राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली में ‘100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज’ कार्यक्रम को संबोधित किया। संघ प्रमुख ने कहा कि आरएसएस अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। मोहन भागवत ने कहा कि यह हमारा देश है और हमें इसकी प्रशंसा करनी चाहिए और इसे दुनिया में नंबर एक बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा कि भारत ने दो बार गुलामी का सामना किया है। उन्होंने 1857 के बाद के समय का जिक्र किया। उस समय, कुछ लोग भारतीय असंतोष को सही दिशा देना चाहते थे। वे चाहते थे कि इससे नुकसान न हो। इसलिए, एक व्यवस्था बनाई जा रही थी। लेकिन कुछ लोगों ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया और इसे स्वतंत्रता की लड़ाई का हथियार बना दिया।
मोहन भागवत ने भारत के विश्व गुरु बनने की बात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब यह समय आ गया है। उन्होंने कहा, ‘भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब वो समय आ गया है।
संघ के सरसंघचालक ने कहा कि आरएसएस की स्थापना का मूल उद्देश्य भारत के उत्थान के माध्यम से विश्व के कल्याण में योगदान करना है। उनका कहना था कि हर राष्ट्र का विश्व के लिए एक मिशन होता है और भारत का मिशन है मानवता को समन्वय और सहयोग का मार्ग दिखाना।उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ केवल “संघ चलाने” के लिए नहीं है, बल्कि भारत को उसकी भूमिका निभाने योग्य बनाने के लिए है। यही कारण है कि 100 वर्ष पूरे होने पर “नए क्षितिज” की चर्चा की जा रही है।
मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि हिंदू शब्द का अर्थ किसी के विरुद्ध खड़ा करना नहीं है, बल्कि समन्वय और समावेश की संस्कृति है। हिंदू परंपरा में विविध मार्गों और आस्थाओं का सम्मान है और इसी आधार पर भारतीय संस्कृति ने हमेशा सभी को साथ लेकर चलने का मार्ग दिखाया है।