मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई है और अब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वहां के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। जन की बात के फाउंडर प्रदीप भंडारी ने बताया कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार क्यों और कैसे गिरी?
कांग्रेस में शुरू से तीन कैंप थे
प्रदीप भंडारी ने बताया कि कांग्रेस में शुरू से ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के 3 गुट थे। तीनों गुट एक-दूसरे को गिराने में लगे रहते थे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस को जिताने में कमलनाथ और ज्योतिराज सिंधिया का रोल अहम था। मुख्यमंत्री कमलनाथ बने लेकिन सिंधिया ने कमलनाथ से अधिक चुनावी रैलियां की थी। सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने सिंधिया को किनारे कर दिया और जो भी सिंधिया के लोगों को मंत्री बनाया गया उनमें से किसी को भी बड़ा मंत्री पद नहीं मिला।
ज्योतिरादित्य सिंधिया स्वाभिमानी और जमीनी नेता थे और 1 साल से इंतजार कर रहे थे। लेकिन जब पानी सर से ऊपर गया और तब सिंधिया कांग्रेस छोड़ने का मन बना चुके थे।
कमलनाथ को था कांग्रेस शीर्ष नेताओं का समर्थन
जन की बात के फाउंडर एंड सीईओ प्रदीप भंडारी ने कहा कि कमलनाथ को शुरू से कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को समर्थन मिला। 1984 के दंगे में कमलनाथ का नाम आया था तब भी कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उनको बचाया। जब मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री चुनने की बात आई तो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सोचा कि कमलनाथ अधिक उपयोगी साबित होंगे और सिंधिया बड़े लीडर के तौर पर नहीं उभर पाएंगे। कांग्रेस सिंधिया को भांप नहीं पाए कि वह एक जमीन नेता से लड़ाई लड़ रही है। सिंधिया के साथ जो 22 विधायकों ने पार्टी छोड़ी उनका कैरियर सिंधिया ने ही बनाया था।
आखिरकार सिंधिया ने कहा कि उन्होंने जन सेवा करनी है और उनके पास बीजेपी को छोड़कर कोई अन्य रास्ता नहीं बचा था और आखिरकार उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की।
इस लड़ाई में किसकी जीत?
जन की बात के फाउंडर एंड सीईओ प्रदीप भंडारी ने बताया कि इस लड़ाई में केवल एक शख्स की जीत हुई वो है दिग्विजय सिंह। दिग्विजय सिंह ने अपने बेटे को मंत्री और विधायक बनवाया और अपने एक रिश्तेदार एमएलए बनवाया। कमलनाथ मुख्यमंत्री पद से हट चुके हैं उनका खेमा मध्य प्रदेश में कमजोर हो चुका। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी ज्वाइन कर ली और मध्यप्रदेश में कांग्रेस में सिर्फ एक जमीनी नेता बचा वो हैं दिग्विजय सिंह।
इस तरह से इस लड़ाई में सिर्फ दिग्विजय सिंह की जीत हुई और दिग्विजय सिंह ने अपना खोया हुआ वर्चस्व कांग्रेस पार्टी में वापस पाया।