राज्य के आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो पूरे प्रदेश में लगभग 17000 के आसपास सरकारी क्वारंटाइन सेंटर खोले गए है । साथ ही कोरोना से कुल अब तक संक्रमित लोगों की संख्या 1350 के पार हो चुकी है ।वहीं अगर देखा जाए तो छत्तीसगढ की पूरी आबादी के मात्र 4-5% ही लोग बाहर राज्य में जाकर प्रवास करते है। वहीं यहां की अधिकतर जनता किसानी और मजदूरी दिहाड़ी पर आश्रित होती है। जब बीते लकडॉउन में रियायत मिलने लगी है तो राज्य में प्रवासी मजदूर जो दूसरे राज्य से अपने घर की ओर वापस हुए है और 14 दिनों के लिए क्वरांटाइन सेंटर में रह रहे लोगों की स्थिति को अगर एक बार देखा जाए तो राज्य में अधिकतर क्वरांटाइन सेंटर की स्तिथि बेहाल है। ना ही रहने के लिए कोई उचित कमरा और ना ही खाने पीने कोई व्यवस्था है। आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो बीते दिनों में राज्य के क्वरांटाइन सेंटर में रह रहे लोगों में अधिकतर मृत्यु और आत्महत्या के मामले या फिर सर्प के डसने से मृत्यु के मामले सामने निकल कर आ रहे है। बीते कुछ दिनों पहले कई ऐसे मामले राज्य के अलग-अलग क्षेत्र से निकल कर आए।
मुंगेली जिले के क्वारंटाइन सेंटर में एक मजदूर की मौत हो गई थी। वहीं बलरामपुर स्थित क्वारंटाइन सेंटर में एक शिक्षक की मौत हो गई थी। शिक्षक की ड्यूटी सेंटर में ही लगी हुई थी। ऐसे कई और मामले भी है जो क्वारांटाइन सेंटर से ही जुड़े हुए है। राज्य में अस्पतालों में मृत्यु दर कम लेकिन क्वरांटाइन सेंटर में ज्यादा है।
राज्य की स्तिथि देखी जाए तो राज्य में टेस्टिंग करने की क्षमता भी काफी कम है। वहीं राज्य के सबसे बड़े अस्पताल एम्स ने 10 दिनों तक सैंपल लेने के लिए भी मना कर दिया गया है। इन सभी कारणों के बीच आम जनमानस भी काफी परेशान है। क्योंकि राज्य में कई ऐसे लोग है जिनका 14 दिन का पीरियड पूरा तो हो चुका है लेकिन अब तक उनकी रिपोर्ट भी नहीं आ पाई है।
वहीं राज्य की सारी सीमाओं को सील कर दिया गया है जिससे कई प्रवासी लोगों को बॉर्डर पर खड़े होकर काफी मशक्कत करने के बाद बॉर्डर के अन्दर प्रवेश दिया जाता है।
राज्य में लगभग 25000 से ज्यादा भी प्रवासी लौट चुके है। जिनके रोजगार को लेकर मुद्दा भी गरमाता जा रहा है। लेकिन अब तक राज्य की सरकार द्वारा किए गए कोशिश को जमीनी स्तर पर उतारने में प्रशासन नाकाम रहा है।