दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अध्यापकों ने शनिवार को दावा किया कि विश्वविद्यालय ने बीए (ऑनर्स) राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम के पांचवें सेमेस्टर में महात्मा गांधी के स्थान पर एक ‘पेपर’ में हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर को शामिल किया है।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी पर अध्याय अब सेमेस्टर सात में पढ़ाया जाएगा, इसका मतलब यह होगा कि चार साल के कार्यक्रम के बजाय तीन साल के स्नातक पाठ्यक्रम का चयन करने वाले छात्र गांधी का अध्ययन नहीं करेंगे। शुक्रवार को शैक्षणिक परिषद की बैठक में इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया।
इस कदम की अध्यापकों के एक वर्ग ने तीखी आलोचना की है, जिन्होंने इसे शिक्षा का भगवाकरण और गांधी और सावरकर की तुलना करने का प्रयास करार दिया है। अब, अंतिम फैसला कार्यकारी परिषद द्वारा लिया जाएगा, जो डीयू की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। डीयू के कुलपति योगेश सिंह ने इस मुद्दे पर टिप्पणी के लिए फोन किए जाने पर कोई जवाब नहीं दिया।
शुक्रवार की बैठक में शामिल शैक्षणिक परिषद के सदस्य आलोक पांडे ने कहा कि पहले, सेमेस्टर पांच में गांधी पर एक पेपर होता था और सेमेस्टर छह में आंबेडकर पर एक पेपर होता था।” उन्होंने कहा कहा कि अब, उन्होंने सावरकर पर एक पेपर शामिल किया है। हमें इससे कोई समस्या नहीं है। लेकिन उन्होंने इसे गांधी को हटाकर किया है। उन्होंने गांधी पर पेपर को सेमेस्टर पांच से सात में स्थानांतरित कर दिया है।
पांडे ने कहा कि ऐसा लगता है कि वे गांधी पर पेपर को पाठ्यक्रम से हटाने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि जो छात्र तीन साल के कार्यक्रम का विकल्प चुनेंगे, वे इस पेपर का अध्ययन नहीं करेंगे। वहीं कार्यकारी परिषद के पूर्व सदस्य राजेश झा ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि छात्रों को शुरुआती सेमेस्टर में गांधी के बारे में बताना चाहिए ताकि उनमें आलोचनात्मक सोच विकसित हो सके।