गुरुवार को शेयर बाजार खुलने से कुछ देर पहले ही एक बार फिर भारत की अर्थव्यवस्था पर हमला करने की कोशिश की गई है। जिसकी वजह से गौतम अडानी के अडानी ग्रुप की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। एक मीडिया ग्रुप OCCRP की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अडानी ग्रुप ने गुपचुप तरीके से खुद अपने शेयर खरीदकर स्टॉक एक्सचेंज में लाखों डॉलर का निवेश किया। ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) की इस रिपोर्ट को Guardian और Financial Times में शेयर किया गया है। इसमें अडानी ग्रुप के मॉरीशस मे किए गए ट्रांजैक्शंस की डीटेल का पहली बार खुलासा करने का दावा किया गया है। इसके मुताबिक ग्रुप की कंपनियों ने 2013 से 2018 तक गुपचुप तरीके से अपने शेयरों को खरीदा। नॉन-प्रॉफिट मीडिया ऑर्गेनाइजेशन OCCRP का दावा है कि उसने मॉरीशस के रास्ते हुए ट्रांजैक्शंस और अडानी ग्रुप के इंटरनल ईमेल्स को देखा है। उसका कहना है उसकी जांच में सामने आया है कि कम से कम दो मामले ऐसे हैं जहां निवेशकों ने विदेशी कंपनियों के जरिए अडानी ग्रुप के शेयर खरीदे और बेचे हैं।
गुरुवार को आई OCCRP की रिपोर्ट में दो निवेशकों नसीर अली शाबान अहली और चांग चुंग-लिंग का नाम लिया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये लोग अडानी परिवार के लॉन्गटाइम बिजनस पार्टनर्स हैं और उसने अपनी रिपोर्ट में इन्हीं दोनों की जांच की है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक OCCRP ने दावा किया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चांग और अहली ने जो पैसा लगाया है वह अडानी परिवार ने दिया था लेकिन रिपोर्टिंग और डॉक्यूमेंट्स से साफ है कि अडानी ग्रुप में उनका निवेश अडानी परिवार के साथ सामंजस्य के साथ किया गया था। OCCRP ने कहा कि सवाल यह है कि यह अरेंजमेंट कानूनों का उल्लंघन है या नहीं, यह इस बात कर निर्भर करता है कि क्या अहली और चांग प्रमोटर्स की तरफ से काम कर रहे हैं या नहीं। अडानी ग्रुप में अडानी ग्रुप ही प्रमोटर है। अगर ऐसा है तो अडानी होल्डिंग्स में उनकी हिस्सेदारी 75 परसेंट से अधिक हो जाएगी।
इस मामले में अहली और चांग ने OCCRP के न्यूज आर्टिकल पर कमेंट नहीं किया। गार्डियन के एक रिपोर्टर को दिए इंटरव्यू में OCCRP ने कहा कि चांग का कहना था कि उन्हें गुपचुप तरीके से अडानी ग्रुप के शेयरों को खरीदे जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उनका कहना था कि जर्नलिस्ट्स की उनके दूसरे निवेशों में क्यों दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हम सिंपल बिजनस में हैं।’
अडानी ग्रुप ने किया खंडन
इस बीच अडानी ग्रुप ने एक बयान जारी कर इन आरोपों का खंडन किया है। ग्रुप ने कहा कि यह सोरोस के सपोर्ट वाले संगठनों की हरकत लग रही है। विदेशी मीडिया का एक वर्ग भी इसे हवा दे रहा है ताकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जिन्न को फिर से खड़ा किया जा सके। ये दावे एक दशक पहले बंद मामलों पर आधारित हैं। तब DR ने ओवर इनवॉइसिंग, विदेशों में फंड ट्रांसफर करने, रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शंस और एफपीआई के जरिए निवेश के आरोपों की जांच की थी। एक इंडिपेंडेंट एडजुकेटिंग अथॉरिटी और एक अपीलेट ट्रिब्यूनल ने इस बात की पुष्टि की थी कि कोई ओवर-वैल्यूएशन नहीं था और ट्रांजैक्शंस कानूनों के मुताबिक थे। मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया था। इसलिए इन आरोपों की कोई प्रासंगिकता या आधार नहीं है।
हालांकि देखने वाली बात ये है की OCCRP की ये रिपोर्ट शेयर बाजार खुलने से थोड़ी देर पहले ही जारी की गई है। अब ये एक संयोग है या भारतीय शेयर बाजार को गिराने की सोची समझी साजिश है ये जांच का विषय है। लेकिन इस रिपोर्ट की टाइमिंग संदेह जरूर पैदा करती है।
हिंडेनबर्ग ने भी लगाए थे आरोप
24 जनवरी को अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग कंपनी हिंडेनबर्ग ने भी अडानी ग्रुप पर ऐसे ही आरोप लगाए थे। जिसमें कहा गया था की अडानी ग्रुप ने शॉर्ट सेलिंग के जरिए शेयरों की कीमतों में गड़बड़ी की है। इस रिपोर्ट की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सेबी (SEBI) कर रही है और रिपोर्ट कोर्ट को सौंप चुकी है।
दूसरी तरफ एक दिन पहले ही ED ने भी ये खुलासा किया था की Hindenberg की रिपोर्ट आने के बाद एक दर्जन कंपनियों ने अडानी ग्रुप के शेयर्स की शॉर्ट सेलिंग से ‘सबसे ज्यादा मुनाफा’ कमाया है। ED ने जुलाई 2023 में भारत के शेयर मार्केट रेगुलेटर, Securities and Exchange Board of India (SEBI) के साथ अपनी जांच के कुछ निष्कर्ष साझा किए थे। आरोप है कि ये सब अडानी ग्रुप पर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाने वाली हिंडेनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के दौरान हुआ। सभी कंपनियां टैक्स हेवन कहे जाने वाले उन देशों से काम करती हैं जहां व्यापार करने पर निवेशकों, कंपनियों या विदेशी निवेशकों पर बहुत कम या जीरो इनकम टैक्स लगता है। इन कंपनियों में कुछ विदेशी पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) और कुछ इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FII) भी हैं। ED के मुताबिक, इन कंपनियों ने हजारों करोड़ रुपये कमाकर विदेशों में बैठे बड़े खिलाड़ियों को फायदा पहुंचाया है।