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Pradip’s Take: गुजरात में चुनावी सरगर्मी पर मेरे कुछ अनुभव (PART 2)

जैसा कि हमारे सभी दर्शक और पाठक गण यह जानते हैं कि ‘जन की बात‘ की टीम इस समय गुजरात में अपनी चुनावी यात्रा पर है. जहां हम ना केवल लोगों के आगामी चुनाव से जुड़े मुद्दों को समझने का प्रयास कर रहे हैं बल्कि देश भर में इस चुनाव के महत्व को समझाने और इस पूरे चुनाव का सही आकलन प्रस्तुत करने की कोशिश भी कर रहे हैं. इसी कड़ी में मैंने ‘जन की बात‘ के सीईओ होने के नाते यह जरुरत समझी की मैं अपने अनुभवों और विभिन्न परिस्थितयों का आंकलन करने के पश्चात आपके सामने Pradip’s Take नाम की एक सीरीज शुरू करूँ.

इस सीरीज के लिए मुझे आप सभी का भरपूर समर्थन भी प्राप्त हो रहा है. जैसा कि आप सभी जानते हैं कि इस सीरीज में मैं राजनीती और समाज के कुछ अनछुए पहलुओं को आप सभी के सामने पेश करता हूं, यह पहलू उन मुद्दे से जुड़े होते हैं जिनतक हमारी पहुँच मुख्यधारा के मीडिया अथवा किसी और माध्यम के जरिए नहीं हो पाती.

यह चुनाव मुख्यतः देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों के बीच है लेकिन यह कहना गलत होगा कि सिर्फ यही दो पार्टियां चुनावी मैदान में है वरन कुछ और भी फैक्टर्स है जो इस चुनाव मैं दोनों पार्टियों के भविष्य को बना या बिगाड़ सकते हैं. हम उन फैक्टर्स को भी समझने का प्रयास करेंगे और यह मैं उम्मीद करता हूं कि आपके सुझाव मुझे समय समय पर विभिन्न माध्यमों के जरिए मिलते रहेंगे.

 

1. गुजरात में प्रधान मंत्री की चुनावी रैली में राष्ट्रीय मुद्दे

प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय मुद्दे उठाने के पीछे अहम वजह कांग्रेस के रफाल, २२ साल के हिसाब, ३.५ साल पर सवाल और मेक इन इंडिया पर सवाल रहे हैं और मोदी की सभा को कांग्रेस को उत्तर देने के रूप में देखा जा सकता है.

 

2. अज़ान के बीच अपना भाषण रोक देना

न ही एंटी-हिन्दू संकेत था न ही प्रो-मुस्लिम संकेत था“. संविधान के प्रति प्रधानमंत्री के आदर को दर्शाता है उनका यह Gesture.

 

3. नवसारी में प्रधानमंत्री की रैली के मायने बहुत दूरदर्शी थे

“This gesture was an indication for the Minority community that we might be so-called Secular in nature but definately not appeasing in nature.”

 

 

हर मुस्लमान भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ नहीं है और अब नजरिया बदल रहा है.

 

4. गुजरात चुनाव अपने आखिरी पड़ाव में है, कैसे बदल रही हैं परिस्थितियां

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही एनर्जिटिक लग रही हैं, मोदी भी सहजता से कांग्रेस के सवालों का उत्तर दे रहे हैं . लेकिन “कई लोग चुप हैं, कैमरा पर भाजपा के साथ हैं और ऑफ-कैमरा भाजपा के खिलाफ भी जा सकते हैं“.

 

5. रुपानी के खिलाफ राजगुरु: राजकोट की लड़ाई प्रदेश में सबसे बड़ी?

“इंद्रनील का है पलड़ा भारी है”. पाटीदार को Mobilise करने में कायब हो गए हैं इंद्रनील. राजगुरु का जीतना रुपानी के चीफ मिनिस्टर की कुर्सी का Red Signal हो सकता है .

 

6. आखिर पाटीदार किसके किले में विजय पताका फहराएंगे?

अर्बन पाटीदार भाजपा के साथ जाने वाले हैं और रूरल पाटीदार भी विभाजित होने वाले हैं. भाजपा का बस इतना नुकसान है की उनके प्रत्याशियों के वोटों से जीत का अंतर घट सकता है.

 

To read Pradip’s top quotes on Gujarat Assembly Elections 2017, click here.

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