तारीख 18 दिसंबर, जगह गुजरात और हिमाचल प्रदेश, मौका था चुनाव के नतीजों के घोषित होने का. पूरा देश टकटकी लगाए यह देख रहा था की दोनों प्रदेशों में आखिर किसकी सरकार बनने वाली है. जाहिर था की दोनों ही प्रदेशों में मुकाबला केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच होना था और नतीजों के घोषित होते ही यह जाहिर हो गया की भाजपा ने दोनों जगह पूर्ण बहुमत वाली सरकार बना ली है. लेकिन जनतंत्र में चुनाव के केवल नतीजे ही नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री का चेहरा भी उतना ही उत्साह जगाता है. और हाल फिलहाल में भाजपा ने इस पद के लिए उत्साह और बढ़ा दिया है, मुख्य वजह की बात की जाये तो वह यह है की भाजपा ने अप्रत्याशित व्यक्तियों को इस पद के लिए चुना है, फिर भले वह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का चुनाव हो, या उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत का चुनाव हो; यही नहीं यहाँ तक की राष्ट्रपति के चुनाव के लिए भी भाजपा ने एक ऐसे व्यक्ति को अपना प्रत्याशी बनाया जिसकी किसी मीडिया चैनल अथवा सत्ता के गलियारों में चर्चा तक नहीं थी.हालाँकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में स्थितियां कुछ अलग थी. गुजरात में इस बात पर संशय चुनाव नतीजों के बाद भी बना रहा की मुख्यमंत्री किसे बनाया जाएगा, हालंकि अंत में विजय रुपानी (तत्कालीन मुख्यमंत्री) को ही इस पद की जिम्मेदारी सौंपी गयी. संशय इसलिए भी था क्यूंकि भाजपा ने पहले से किसी भी व्यक्ति को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया था, रुपानी को भी नहीं. लेकिन हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया था, जो थे प्रेम कुमार धूमल, जोकि भाजपा के भरोसेमंद नेता रहे हैं और २ बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
हालाँकि दिल्ली चुनाव के बाद यह पहला मौका था जब भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री पद का दावेदार चुनाव के पहले घोषित किया था, और अचरज है की दोनों ही जगह से मुख्यमंत्री उम्मीदवार अपनी अपनी सीटों को जीत पाने में नाकामयाब रहे. मसलन दिल्ली में किरण बेदी अपनी कृष्णा नगर विधानसभा से तो वहीँ प्रेम कुमार धूमल अपनी विधानसभा सुजानपुरा से चुनाव हार गए.
जैसे ही चुनाव के नतीजे घोषित हुए सबसे बड़ा सवाल था की अगर प्रेम कुमार धूमल नहीं तो और कौन मुख्यमंत्री पद पर बैठेगा? फिर शुरू हुई ऐसे चेहरे की तलाश जिसके नाम पर न ही केंद्र और न ही राज्य में कोई विरोधी स्वर उठें. भाजपा ने पर्येवेक्षक के तौर पर राज्य में, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण एवं और ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को इस उम्मीद से भेजा की वह राज्य के विधायकों से बातचीत करके किसी चर्चित चेहरे को मुख्यमंत्री पद के लिए चुनेंगे.
जैसे ही दोनों पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी, तभी से दो नामो को इस रेस में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हुए देखा जाने लगा, नाम थे केंद्रीय मंत्री जे. पी. नड्डा और पूर्व प्रदेश मंत्री जयराम ठाकुर. जहाँ जे. पी. नड्डा, ब्राह्मण समुदाय से आते हैं तो वहीँ जयराम ठाकुर, ठाकुर समाज से आते हैं (ध्यान रहे की ठाकुर समाज की तादाद प्रदेश में ब्राह्मण समाज से अधिक है).
अंततः आज जयराम ठाकुर के नाम पर केंद्रीय एवं प्रादेशिक नेतृत्व ने मुहर लगा थी, इस मौके पर प्रेम कुमार धूमल भी उपस्थित रहे. माना जा रहा है की जे. पी. नड्डा और प्रेम कुमार धूमल, हिमाचल प्रदेश के दोनों ही दिग्गज नेताओं ने एक स्वर में जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री पद पर काबिज़ होने का समर्थन किया.
अपने कॉलेज के दिनों से एबीवीपी के साथ जुड़े रहने के बाद वो आरएसएस के एक सक्रिय सदस्य बने, १९९८ में प्रथम बार हिमाचल प्रदेश में विधायक के तौर पर चुने गए और तबसे लेकर अबतक ५ बार सदन में चुन कर आ चुके हैं. वो पिछली धूमल सरकार में पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री भी रह चुके हैं और उनके मुख़्यमंत्री पद के लिए चुने जाने के पश्च्यात एक इतिहास बनता दिख रहा है. ऐसा प्रथम बार हो रहा है की हिमाचल में मंडी क्षेत्र से कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री बनेगा.रोचक तथ्य यह है की जिस ‘सेराज’ से वो विधायक चुने गए हैं, उस सीट से १९९३ में वो चुनाव हार गए थे, हालाँकि उन्होंने २०१४ में भाजपा को केंद्रीय चुनाव में हिमाचल प्रदेश से १६ सीटें दिलाने में अहम् भूमिका निभाई थी.
यह स्टोरी स्पर्श उपाध्याय ने की है