साल 2017, कई मायनो में बेहद खास था. जब कभी भी इतिहास से गवाही ली जाएगी, इस बात का जिक्र जरूर होगा की साल 2017 ने भारतीय राजनीती को नए आयाम दिए थे. इस साल ने कई समीकरण ध्वस्त करदिये और कई नए समीकरण बना भी दिए, इसी कड़ी में हम आपके सामने इस साल की 10 सबसे बड़ी राजनितिक घटनाएं साझा करेंगे और बताएँगे की कैसे इस बीतते साल के गर्भ में भारत की राजनीती का भविष्य हो सकता है.
योगी आदित्यनाथ के उदय के साथ उत्तर प्रदेश में खिला कमल
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने जिस तरह प्रचंड बहुमत हासिल किया उससे यह तो साफ़ था की भारतीय राजनीती में भाजपा का उदय दीर्घकालीन होने वाला है और योगी आदित्यनाथ उसका मुख्यतम चेहरा बनकर उभरे. जहाँ भाजपा ने उत्तर-प्रदेश की दो सबसे बड़ी पार्टिया बसपा और सपा का सफाया किया वहीँ कांग्रेस को भी बुरी शिकस्त दी. सपा-कांग्रेस के गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में कमल के खिलने के रास्ते साफ़ करदिये और 2014 के आम चुनावों के बाद एक बार फिरसे यह जाहिर करदिया की नरेंद्र मोदी की काट मौजूदा समय में मजूद नहीं है.
सत्ता विरोधी लहर के बीच भी गुजरात में चमकी बीजेपी, तीन लड़के रहे नाकाम
कहते हैं किसी भी चुनावों में वोट मौजूदा सरकार के खिलाफ पड़ते हैं लेकिन गुजरात में भाजपा ने इस कहावत को हर बार झुठलाया है और इस बार भी १९ साल की ‘Anti-Incumbency’ को बहुत सहजता से चकमा दे दिया. हालाँकि शुरुवात में जरूर यह लगा की भाजपा इस चुनाव में कमजोर है, लेकिन जहाँ तक बहुमत का सवाल है तो वह भाजपा के पास नतीजों के बाद बरक़रार रहा. १५ साल में यह प्रथम बार था जब भाजपा के पास नरेंद्र मोदी के रूप में मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं था, बावजूद उसके भाजपा ने यहाँ सरकार बनायीं और पूरे देश में यह बता दिया की उनके खिलाफ किसी भी प्रकार का जातीय/धार्मिक एवं वैचारिक विरोधी टिक नहीं सकता. जहाँ चुनावों से पहले तीन लड़को की चर्चा आम थी तो वहीँ नतीजों के बाद यह देखा गया की कांग्रेस और तीन लड़कों की राजनीती ने भाजपा को कड़ी टक्कर देते हुए भी वो उन्हें सत्ता हासिल करने से नहीं रोक सके.
जयललिता की मृत्यु ने तमिल नाडु की राजनीती में लाया बदलाव
दिसंबर २०१६ में तमिल नाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की मृत्यु के बाद जहाँ शशिकला को उनका वारिस माना जा रहा था लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले में दोषी पाए जाने के बाद शशिकला को जेल जाना पड़ गया और फिर उदय हुआ उस शख्स का जो जयललिता की गैर मौजूदगी में तमिल नाडु का मुख्यमंत्री जरूर रहा था लेकिन बिना किसी पहचान के साथ. हम बात कर रहे हैं ओ. पनीरसेल्वम की जिन्होंने जयललिता की मृत्यु के बाद अपनी पहचान बनाने के उद्देश्य से विद्रोह तक कर डाला और अंततः उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. अभी मुख्यमंत्री के तौर पर पार्टी ने ई. के. पलानिस्वामी को चुना है. लेकिन ऐसा माना जा रहा है की यह ऐआईऐडीएम्के में दो फाड़ की शुरुवात भर है.
कांग्रेस को मिला नया अध्यक्ष, राहुल गाँधी के सामने जिम्मेदारियां हैं बड़ी
देश की सबसे पुरानी पार्टी और स्वतंत्र भारत में सबसे लम्बे समय तक केंद्र की सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी को अंततः अपना नया अध्यक्ष मिल गया, जी हाँ जिसका अंदाज़ा सबको पहले से था वही हुआ, नेहरू-गाँधी परिवार के वारिस राहुल गाँधी को गुजरात चुनाव के नतीजों के ठीक पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया. तत्कालीन अध्यक्ष और उनकी माताश्री सोनिया गाँधी ने पहले ही संकेत दे दिए थे की राहुल गाँधी पार्टी की कमान सँभालने के लिए अब तैयार हैं. हालाँकि गुजरात में आये नतीजों से राहुल गाँधी खुश तो नहीं होंगे लेकिन गुजरात में उनको मिले समर्थन से उनके पक्ष में सभावना बढ़ी है. मात्र ४ राज्यों में सिमटी कांग्रेस के लिए आगे क्या संभानाएं हैं वो तो वक़्त बताएगा फ़िलहाल राहुल गाँधी को अध्यक्ष के तौर पर अपनी पार्टी का नवनिर्माण जरूर करना है.
रजनीकांत की होगी राजनीती में एंट्री, बदलेंगे कई राजनितिक समीकरण
सुप्रसिद्ध दक्षिण भारतीय कलाकार रजनीकांत ने साल के आखिरी हफ्ते में राजनीती में प्रवेश के निर्णय पर मुहर लगा ही दी. उन्होंने कहा की आने वाले तमिल नाडु चुनावों में वो अपनी पार्टी बनाएंगे और सभी सीटों पर प्रत्याशी उतरेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा की भाजपा, कांग्रेस और पहले से मौजूद २ क्षेत्रीय पार्टियों के बीच रजनीकांत की पार्टी क्या कमाल दिखाती है. यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी की तमिल नाडु में क्या होगा, लेकिन यह जरूर तय है की दो क्षेत्रीय पार्टियों के बीच सत्ता के खेल में रजनीकांत की एंट्री धमाकेदार होगी और राज्य में कई बड़े परिवर्तन और समीकरण बनने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
उत्तर पूर्वी राज्यों में भी लहराया भाजपा ने परचम
भाजपा को मणिपुर और असम में पहली बार मिली जीत से उत्साहित होने के कई कारण मिले हैं. उनकी यह जबरदस्त जीत कही जा सकती है जो उनके भारत के हर राज्य में शासन करने के सपने को पंख लगा सकती है. आने वाले समय में और २ उत्तर पूर्वी राज्यों में चुनाव होने हैं जहाँ भाजपा पहले से कहीं मजबूत और आत्मविश्वास से भरी पूरी नजर आ रही है. २०१८ के होने वाले चुनावों की कवायद दिन प्रतिदिन तेज़ होती जा रही है.
बिहार की राजनीती में हुई भाजपा के वापसी, नितीश कुमार ने मिलाया मोदी से हाथ
काफी दिनों की तू तू मैं मैं के बाद अंततः बिहार में राजद और जदयू का गठबंधन टूट गया,और आनन् फानन में जदयू ने भाजपा से दुबारा हाथ मिला लिया. जहाँ केंद्र के चुनाव से ठीक पहले नितीश कुमार ने एनडीऐ से निकलना मुनासिब समझा था और २०१५ बिहार चुनाव के लिए कभी अपने चिर प्रतिद्वंदी रहे लालू प्रसाद के साथ हाथ मिलाया था तो वहीँ २०१७ में उनकी भाजपा के साथ गठबंधन को एनडीऐ में वापसी के तौर पर देखा जा सकता है. नितीश-मोदी की जोड़ी का वापस आना उत्तर भारतीय राजनीती के लिए एक नए युग की शुरुवात हो सकती है.
जीएसटी ने बदल दिया देश में टैक्स का मायाजाल, वन नेशन, वन टैक्स की ओर बढ़ा देश
जीएसटी अंततः भारत में लागू कर दिया गया, और इसके मद्देनजर पुख्ता इंतज़ाम भी धीरे धीरे होने लगे हैं. हालाँकि गुजरात चुनाव से पहले यह आशंका थी की जीएसटी के वजह से भाजपा गुजरात में सत्ता गँवा सकती है, लेकिन यह सब दावे झुठला दिए गए और जीएसटी में कुछ अमूल चूल परिवर्तन करके लोगों की दिक्कते मिटा दी गयी. अब भारत में अलग अलग टैक्स के मायाजाल से छुटकारा मिल चूका है और एक ही टैक्स अब पुरे देश में लागू है.
पंजाब में हुई कांग्रेस की वापसी, कैप्टेन अमरिंदर सिंह की राजनीती में जबरदस्त वापसी
पंजाब में अकाली दल का सूपड़ा साफ़ करते हुए कांग्रेस ने सरकार बना ली और इस जीत के प्रमुख नायक रहे मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह जिन्होंने कांग्रेस का पंजाब में नवनिर्माण करने में अहम् भूमिका निभायी. पंजाब, कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि २०१४ के बाद पंजाब पहला ऐसा चुनाव था जहाँ किसी राज्य में कांग्रेस सत्ता में लौटी थी. पंजाब, कांग्रेस द्वारा शासित ४ राज्यों में से एक है.
तीन तलाक की प्रथा हुई तार तार, न्यायालय और संसद आये साथ साथ
तीन तलाक नामक कुप्रथा को अंततः सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित करदिया और यह कई मायनो में भाजपा के लिए एक बड़ी जीत थी क्यूंकि भाजपा ने हर चुनाव में इसे एक मुद्दा बनाया था और कहा था की मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार खत्म करने के लिए तीन तलाक जैसी कुप्रथा का अंत करना पड़ेगा. हाल ही में सरकार द्वारा लोकसभा से पास कराये गए बिल में तीन तलाक देने के बाद पुरुष के लिए सजा का प्राविधान करके सरकार ने अपनी मंशा जग जाहिर करदी है.
2017 कई मायनो में अलग था लेकिन उम्मीद है की २०१८ इससे भी अलग होगा और हमे राजनीती के विभिन्न रंग देखने को इसी तरह मिलते रहेंगे. आप सभी को नव-वर्ष की शुभकामनायें. जय हिन्द.
यह लेख स्पर्श उपाध्याय ने फाउंडर सीईओ जन की बात, प्रदीप भंडारी के इनपुट्स के साथ लिखा है. क्रिएटिव एडिटिंग और आईडिया फॉउन्डिंग पार्टनर जन की बात, आकृति भाटिया ने उपलब्ध करवाया है