दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है. इस झटके की वजह से दिल्ली में आने वाले समय में एक मिनी चुनाव होने के रास्ते साफ़ हो गए हैं. केंद्रीय चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों के चुनाव को अयोग्य घोषित कर दिया और रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास उनकी हामी भरने के लिए भेज दी है.
क्या है पूरा मामला
दरअसल मार्च 2015 में अरविंद केजरीवाल ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया था. इन 21 विधायकों को बिना किसी आर्थिक लाभ के इस पद पर नियुक्त किया गया था. लेकिन मई 2015 में राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा नामक एक एनजीओ ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल डाली थी जिसमें यह कहा गया था इन 21 विधायकों की नियुक्ति LG की सहमति के बिना की गई है और यह नियुक्ति संविधान के आर्टिकल 239 एए के खिलाफ है. इसके पश्चात जून 2015 में अधिवक्ता प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के सामने यह कंप्लेंट की थी जिसमें 21 विधायकों को अयोग्य घोषित करने को लेकर दरख्वास्त की गयी थी, उस कंप्लेंट में यह कहा गया था कि किसी भी विधायक या सांसद द्वारा लाभ का पद ग्रहण करना असंवैधानिक है.
इसके बाद दिल्ली सरकार ने जून 2015 में ही एक एक्ट में संशोधन पारित किया गया, जिसका नाम था ‘दिल्ली मेंबर ऑफ लेजिस्लेटिव असेंबली (रिमूवल ऑफ दिसक्वालिफिकेशन) एक्ट’ 1997 जिसके जरिए उक्त 21 विधायकों को अयोग्यता से बचा लिया गया था. हालाँकि इस संशोधन को राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकृति यह कहकर नहीं दी गई थी कि दिल्ली कोई प्रदेश नहीं है इसलिए दिल्ली विधानसभा द्वारा पारित कोई भी कानून या संशोधन तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि उसको दिल्ली के एलजी की स्वीकृति ना मिल जाए जो कि इस केस में नहीं मिली थी.
अगस्त 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट में उन सभी निर्णय को असंवैधानिक करार दिया था जो भी आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा यह कहकर लिए गए थे कि उनके द्वारा LG से सहमति लेना अनिवार्य नहीं है.
सितंबर 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार के 2015 मार्च के नोटिफिकेशन को भी खारिज कर दिया था जिसमें 21 विधायकों को पार्लियामेंट्री सचिव बनाया गया था .
चुनाव आयोग के द्वारा दिए गए निर्णय पर अब राष्ट्रपति की मुहर लगनी है जिसके लगते ही मौजूदा 20 विधायकों की विधानसभा की सदस्यता रद्द मानी जाएगी .
आखिर क्या है लाभ का पद
संविधान के आर्टिकल 191 (1) (a) में यह लिखा हुआ है की “ कोई भी व्यक्ति जो विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य के रूप में चुना गया है,उसकी सदस्यता उस परिस्थिति में रद्द की जा सकती है अगर वह व्यक्ति भारत सरकार में अथवा प्रथम शेड्यूल में लिखे राज्यों के सरकार में किसी भी लाभ के पद पर है हालांकि अगर किसी राज्य की विधायिका कोई कानून पारित करके किसी पद को स्पष्ट रूप से लाभ का पद ना माने तो उसमें यह आर्टिकल लागू नहीं होगा”
चूँकि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं प्राप्त है इसलिए सरकार द्वारा 1997 के एक्ट में संशोधन करना तब तक कानूनी रूप से संभव नहीं था जब तक की उस पर मुहर खुद LG ना लगा दे.