वर्तमान में भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव बना हुआ है। नेपाल भारत की बीआरओ द्वारा पश्चिमी लिपुलेख में बनाई गई सड़क का विरोध कर रहा है। इसके साथ ही नेपाल लिपुलेख के साथ भारत के कुछ अन्य हिस्सों को भी अपना बता रहा है। इसके लिए नेपाली संसद ने देश का नया मानचित्र भी दुनिया के सामने रखा है। जिसमें लिपुलेख और कालापानी को नेपाल का हिस्सा बताया। कई विशेषज्ञों के अनुसार भारत के प्रति नेपाल के आक्रामक रुख का कारण चीन है। आइए जानते है नेपाल का चीन के प्रति झुकाव के क्या कारण है?
चीन द्वारा नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कुर्सी बचाना
वर्तमान में नेपाली सत्ता नेशनल कम्युनिस्ट पार्टी के पास है। नेपाली प्रधानमंत्री ओली दो तिहाई सीटों के साथ सत्ता पर काबिज है। इसके साथ ही नेपाल के सात में से छह राज्यों में नेशनल कम्युनिस्ट पार्टी की ही सरकार है। लेकिन बीते कुछ महीने पहले नेपाल के प्रधानमंत्री की कुर्सी जाते जाते बच गई। प्रधानमंत्री ओली की कुर्सी को बचाने में चीन ने अहम भूमिका निभाई थी। नेपाल में राजनैतिक उथल-पुथल को समझने के लिए हमें पहले 2017 में हुए नेपाल के चुनाव को जान लेना जरूरी है। दिसंबर 2017 में नेपाल में आम चुनाव हुए। आम चुनावों में जीत के लिए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट एंड लेनिस्ट) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल ( माओइस्ट सेंटर) जिसका नेतृत्व पुष्प कमल दहल के पास था। दोनों पार्टियों ने गठबंधन किया और जीत हासिल की, इसके बाद मई 2018 में दोनों पार्टियों ने अपना विलय कर लिया और नेशनल कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया। इसमें गौर करने वाली बात है, इस खबर को चीनी मीडिया ने बड़ी प्रमुखता से छापा था। विलय के बाद नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल के बीच सत्ता को लेकर तनाव बढ़ता चला गया। और एक समय आया कि जब नेशनल कम्युनिस्ट पार्टी की नेपाल में सत्ता जा सकती थी। इसी बीच नेपाल में चाइना की एंबेसडर होन यांकी ने नेपाली राजनेताओं से मुलाकात की। जिसके बात नेपाल की राजनीति में कुछ स्थिरता आती दिखी।
नेपाल में चीनी निवेश
नेपाल के उद्योग विभाग के अनुसार नेपाल को वित्तीय वर्ष 2019-20 के नवंबर माह तक 95 मिलियन यूएस डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ। जिसमें से अकेले 88 मिलियन डॉलर चीन से आया था। आंकड़ों के हिसाब से नेपाल में विदेशी निवेश का 93 फ़ीसदी से ज्यादा हिस्सा चीन से आता है। नेपाल में विदेशी निवेश के मामले में अमेरिका 1.85 मिलियन यूएस डॉलर के साथ दूसरे और भारत 1.76 मिलियन यूएस डॉलर के साथ तीसरे स्थान पर काबिज है।
चीन नेपाल में 3 अरब डॉलर से अधिक की रेल परियोजना विकसित कर रहा है।
चीन नेपाल में अपनी महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव के तहत 3 अरब डॉलर से अधिक रेल परियोजना पर निवेश कर रहा है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार वर्तमान में नेपाल की जीडीपी 28 अरब डॉलर की है। विशेषज्ञों के अनुसार कि चीन के द्वारा नेपाल को रेल परियोजनाओं के लिए दिया जाने वाला कर्ज 3 अरब डॉलर से ऊपर का है। जो कि नेपाल की जीडीपी का 10% से अधिक है। और नेपाल भी श्रीलंका की तरह चीन के debt ट्रैप का शिकार हो सकता है। इस परियोजना के तहत चीन नेपाल के संखु को चीन नेपाल सीमा के पास तिब्बत के ग्योरोंग से जोड़ेगा।
नेपाल बदलती विदेश नीति
बीते कुछ महीनों में नेपाल की विदेश नीति में बड़ा अंतर देखने को मिला है। बीते दशकों की बात करें तो नेपाल की विदेश नीति में भारत को बड़ी प्राथमिकता दी जाती थी। लेकिन अब यह बदल गई है। उदाहरण के लिए जब 2020 की वर्ल्ड हैल्थ काउंसिल में कोरोनावायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए एक स्वतंत्र टीम चीन के वुहान भेजने के प्रस्ताव को ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय यूनियन के द्वारा लाया गया। तो भारत, रशिया, बिट्रेन, तुर्की, जैसे बड़े-बड़े देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। वर्ल्ड हैल्थ काउंसिल में केवल पाकिस्तान, चीन, नेपाल, ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। वर्तमान में चीन के द्वारा होंग काेंग में सिक्योरिटी कानून लाया जा रहा है। जिस पर ब्रिटेन,अमेरिका, जैसे देश चीन को चेतावनी दे चुके है। नेपाल ने होंग काेंग के मसले को चीन का अंदरूनी मसला बताया।