अमन वर्मा (जन की बात)
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा दे दिया है, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उनके स्वास्थ्य की स्तिथि खराब है। सरकार के सूत्रों ने कहा कि गिलानी की स्वास्थ्य स्थिति गंभीर लेकिन स्थिर है।
सैयद अली शाह गिलानी की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति के अफवाहों के बीच घाटी में सुरक्षा को हाई अलर्ट पर रखा गया है। कुछ रिपोर्ट्स का कहना है की गिलानी का शुक्रवार शाम को ही निधन हो गया था। हालांकि उनके बेटे नसीम गिलानी ने इन खबरों को अफवाह बताया और कहा कि उनके पिता का स्वास्थ स्थिर है।
गिलानी को कट्टर अलगाववादी नेता के रूप में माना जाता है, गिलानी पहले जमात-ए-इस्लामी कश्मीर के सदस्य थे, लेकिन बाद में तहरीक-ए-हुर्रियत के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की।
कौन है सैयद अली शाह गिलानी?
गिलानी ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी दलों के समूह, ऑल पार्टीज हुर्रियत (स्वतंत्रता) सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में काम किया है। गिलानी 1972 में सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने और 1977 और 1987 में एक ही निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनावों में जीते।
क्या है हुर्रियत?
ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस (APHC) 26 राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों का एक गठबंधन है जो 9 मार्च, 1993 को कश्मीरी स्वतंत्रता को बढ़ाने देने के लिए एक राजनीतिक मोर्चे के रूप में गठित किया गया था।
हुर्रियत की उत्पत्ति के 1993 के कश्मीर विद्रोह के पहले चरण के रूप में हुई थी। भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष जिसने 1980 के दशक के दौरान आतंकवादी हिंसा को घेर लिया था और 1990 के शुरुआती दिनों में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा शुरू किए गए आतंकवाद विरोधी अभियानों का सामना करना पड़ा था। जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) ने अपनी स्वतंत्रता- समर्थन वाली विचारधारा के साथ एक आतंकवादी संगठन का रूप ले लिया था, जिसका नियंत्रण पाकिस्तान के इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और चरमपंथी इस्लामी संगठनों का एक नेटवर्क करता है।
क्या अमित शाह हैं इसकी वजह?
कुछ राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि गीलानी के इस्तीफे की वजह गृह मंत्री अमित शाह हैं, और उनका एक के बाद एक कश्मीर में प्रो – इंडिया एक्शन है। साथ ही भारत की सेना कशमीर में अतांकवादियो का लगातार एनकाउंटर भी कर रही है। जिसकी वजह से अलगवादियों को अब अपना एजेंडा चलाने में परेशानी हो रही है। क्योंकि अब अलगवादी नेता अतंकवादियो को और पनाह देने में सक्षम नहीं हैं। इस लिए देखने वाली बात ये होगी को गिलानी के बाद उसकी कुर्सी कौन संभालेगा?